फूलों पर कोलाज Hindi Story Posted on April 23, 2020 0 “याद कीजिए, सर. कल आपके पास दो बुक्स रखवा कर गई थी. आप कह रहे हैं बुक्स कोई और ले गया. मुझे उन किताबों की बहुत ज़रुरत है.”अनु परेशान दिख रही थी.“देखिए मोहतरमा, अगर वो किताबें इतनी ज़रूरी थीं तो आप कल ही क्यों नहीं ले गईं. यहाँ इतने स्टूडेंट्स आते हैं न जाने कब कौन ईशू करा कर ले गया. हर एक की रखी किताब कैसे याद रख सकता हूँ. प्रोफ़ेसर साहेब आप ही इन मोहतरमा को समझाइए.”लाइब्रेरियन ने अभी आए अरमान से कहा.“आप किन किताबों की बात कर रही हैं?’किताबें लौटाने आए नौजवान लेक्चरार अरमान सिद्दीकी ने अनु और लाइब्रेरियन की बातें सुन कर जानना चाहा.“मुझे कीट्स की कविताओं पर लिखी गई समीक्षाएं पढनी हैं, उन्हीं के आधार पर अपना पेपर लिखना था. अगर वो किताबें नहीं मिलीं तो मेरा पेपर अच्छा नहीं बनेगा.”“आपको कीट्स पर कौन सी बुक्स चाहिए? लाइब्रेरी में किताबों की दो-तीन कौपीज़ होती हैं. अरमान ने पूछा.“कीट्स की कविताओं पर बस वही एक अच्छी किताब थी, मुझे एक इम्पॉरटेंट पेपर सबमिट करना है. कल मेरे पास लाइब्रेरी कार्ड नहीं था इसलिए किताब यहाँ रखवा दी थीं. ज़रूर मेरा ही कोई साथी किताब ले गया होगा.”अनु का सुन्दर चेहरा मायूस दिख रहा था.“आपकी परेशानी समझ रहा हूँ. वैसे क्या आप इस यूनीवर्सिटी में इंगलिश विषय ले कर पढाई कर रही हैं?” अरमान की उत्सुकता बढ़ गई थी.“जी हाँ, अभी इंगलिश लिटरेचर में एम ए फाइनल में हूँ..”“ये तो बड़ी खुशी की बात है, यहाँ ज़्यादातर लडकियां उर्दू, हिस्ट्री जैसे सब्जेक्ट लेती हैं. इंगलिश लिटरेचर में शायद आप अकेली ही लड़की होंगी. वैसे भी वादी के हालात की वजह से कम ही लडकियां यूनीवर्सिटी या कॉलेज में पढने बाहर आ पाती हैं. आपसे मिल कर खुशी हुई.”अरमान की आँखों में अनु के लिए प्रशंसा थी,“असल में मेरे पापा खुले ख्यालों वाले हैं. उनका मानना है, लड़की को अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाना चाहिए, इसके लिए एजुकेशन बहुत ज़रूरी है. पापा खुद जम्मू के एक कॉलेज में प्रिंसिपल थे. अनु के चेहरे पर कुछ गर्व छलक आया."ये तो बड़ी खुशी की बात है, आपके पापा का क्या नाम है?”किताबें लाइब्रेरियन को देते अरमान ने पूछा.“डॉक्टर पी के मट्टू, उनका सब्जेक्ट फिजिक्स था. अभी भी कुछ् स्टूडेंट्स उनसे अपनी प्रॉब्लेम सौल्व कराने आते हैं. अरे बातों –बातों में देर हो गई और बाहर तेज़ बारिश शुरू हो गई. अब यहाँ रुकना पडेगा.. देर होने से मम्मी परेशान हो जाती हैं.” बाहर नज़र डालती अनु परेशान हो उठी.“आप कहाँ रहती हैं.? मेरे पास कार है आपको घर ड्रॉप कर सकता हूँ.”“नहीं-नहीं, आपको तकलीफ नहीं दे सकती, यहीं कुछ देर वेट कर लूंगी.”“मेरी तकलीफ छोड़िए मै ने पूछा आप कहाँ रहती हैं, और अपना पता बताते मत डरिए. मै इसी यूनीवर्सिटी के हिस्ट्री डिपार्टमेंट में लेक्चरार हूँ. अपनी पीएच डी सबमिट करने वाला हूँ, इसीलिए बुक्स लेने लाइब्रेरी आता हूँ.”अरमान के चेहरे पर गंभीरता थी..“लाल चौक से थोड़ा आगे जा कर राइट टर्न लेना होता है. उसी रोड पर मेरा घर है.”अनु ने कहा.“अरे मेरे घर का भी वही रास्ता है. तब तो कोई मुश्किल ही नही है. आइए मेरी कार पास ही में है.दोनों लाइब्रेरी से बाहर निकल आए, तेज़ी से कार के पास पहुँच अरमान ने अनु के लिए आगे वाली डोर खोली थी. कुछ संकोच के साथ अनु कार में बैठ गई. चहरे पर उदासी स्पष्ट थी. कनखियों से अनु का चेहरा देखता अरमान उसकी मनोदशा समझ गया.“आप गूगल पर भी तो कीट्स के बारे में बहुत सी जानकारी पा सकती हैं.’“असल में मै ने अपने पेपर- प्रेजेंटेशन के लिए जो टॉपिक सोचा है, उसके बारे में उस बुक में बहुत अच्छी जानकारी दी गई है.”अनु के शब्दों में निराशा साफ़ झलक रही थी.“परेशान न हों, कोई न कोई आपकी मदद ज़रूर करेगा. कहते हैं. जिस चीज़ को शिद्दत से चाहा जाए उसे पाने में सारी कायनात मदद करती है.”अरमान ने मजाकिया अंदाज़ में कहा.“आप तो फिल्मी डॉवळॉग बोल रहे हैं, अब कौन मेरी मदद करेगा?”मायूसी से अनु ने कहा.“हो सकता है, वो कोई मै ही हूँ. कोशिश करूंगा आपके काम की बुक आपको मिल जाए.” “शुक्रिया, आप मेरी हेल्प करने की कोशश करेंगे, मेरे लिए इतना ही काफी है.” अनु ने कहा.“मुफ्त में शुक्रिया ना दें, पता नहीं बुक मिलेगी भी या नहीं. बाई दी वे आपका नाम क्या है?”“अनुप्रिया, पर सब मुझे अनु के नाम से पुकारते हैं.”“मेरा भी नाम तो अरमान है, पर अम्मी मान कहती हैं. एक बात समझ में नहीं आती, अगर छोटे ही नाम से पुकारना है तो बेकार में लंबे नाम ही क्यों रखे जाते हैं.’अरमान के चेहरे पर मुस्कान थी.कार से राiइट टर्न लेने के थोड़ी देर बाद अनु ने अपने जिस घर पर कार रोकने को कहा, उस घर को देखता अरमान चौंक गया. दूर से ही घर के सामने रंग-बिरंगे फूलों का मेला सजा हुआ था. हर रंग हर किस्म के फूल एक-दूसरे से होड़ लेते हवा के साथ झूम रहे थे. अरमान ने कार रोक दी और पूछा-“आप इस फूलों की वादी में रहती हैं?”आरमान के चहरे पर मुग्ध भाव था..“हमारे घर का नाम तो नन्दन कुटीर है ये घर हमारे बाबा ने बनवाया था, यह नाम उन्हीं ने दिया था. बहुत से फूलों के पौधे बाबा ने ही लगाए थे..”“आपका घर तो अन्दर भी गुलदानों में सजे फूलों से महकता होगा.”“जी नहीं, हमें शाख से फूल तोड़ना अच्छा नहीं लगता. शाख पर हंसते फूल अच्छे लगते हैं.” अनु के चेहरे पर खुशी झलक आई थी.“कमाल है, आखिर शाखों पर भी तो फूल मुरझा जाते हैं फिर उन्हें घर में क्यों न सजाया जाए.”“आपने शायद देखा नहीं है, शाख से गिरी पंखुड़ियां ज़मींन को तरह-तरह के रंगों से सजा देती हैं, जैसे ज़मीन पर कोलाज बनाया गया हो.”अनु की आँखों में जैसे सपने थे.“मान गया, आपका फलसफा बहुत खूबसूरत है. मै कभी ऐसा सोच भी नहीं सका.”“शुक्रिया, क्या आपने कभी फूलों की पंखुड़ियों को अपनी किताब के सफों पर कैद नहीं किया है? मेरी बुक्स में तो तरह-तरह के फूल देखे जा सकते हैं.”“आपकी बातों से लगता है आप कोई शायरा हैं, जो सपनों की दुनिया में रहती हैं.”“नहीं-नहीं, हम शायरा नहीं हैं, पर हमारी एक दोस्त नफीसा थी, वह हमें उर्दू की शायरी सुनाती थी. हमें वो सुन कर बहुत अच्छा लगता था.”हळ्की मुस्कान से अनु का सुन्दर चेहरा खिल उठा”“अम्मी के साथ जब भी इस तरफ से गुजरता, इन फूलों की खूबसूरती अम्मी का दिल खुश कर देतीं. एक बार तो उन्होंने आपके घर के भीतर जाने का भी मन बना लिया था.”“तो फिर आप आए क्यों नहीं, आज भी हम घर के बाहर ही रुके हैं. चलिए अन्दर आकर एक कप कॉफी ले लीजिए. पापा आप से मिल कर खुश होंगे.”शुक्रिया, पर आज नहीं, देर होने पर मेरी अम्मी भी आपकी मम्मी की तरह नाराज़ हो जाएंगी.”“ठीक है, पर वादा कीजिए एक दिन आप अपनी अम्मी के साथ आएँगे.”“अगर मेरी अम्मी आपके कुछ फूलों को अपने साथ ले जाना चाहें तब तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगी. क्या आप उन्हें फूल तोड़ने की इजाज़त देंगी?”अरमान के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी.“आपने आज लिफ्ट दी है उसके बदले में फूल देना तो बनता है. हिसाब बराबर.”अनु शैतानी से हंस दी. ‘बाय’ कह कर कार से उतरती अनु ने हाथ हिला कर अरमान को विदा दी थी.दरवाज़ा खोलती मम्मी ने अनु को देख कहा-“यहाँ का मौसम जानती है, फिर भी छाता नहीं ले गई. भीग गई होगी.”“नहीं मम्मी, एक प्रोफ़ेसर साहब ने अपनी कार से छोड़ दिया, जानती हो मम्मी उनकी अम्मी हमारी बगिया के फूलों की बहुत तारीफ़ करती हैं..”“उन प्रोफ़ेसर का क्या नाम है?अनु की बात सुनते पापा ने पूछा.“अरमान सिद्दीकी, यूनीवर्सिटी में हिस्ट्री के प्रोफ़ेसर हैं.”“तू उनके साथ घर आई, तेरी क्या अक्ल मारी गई है. देखती नहीं यहाँ के क्या हालात हो रहे हैं, रोज़ बम और गोलियां चल रही हैं. जब तक तू वापिस नहीं आ जाती मेरी जान सूखती रहती है. यहाँ के बिगड़ते हालातों की वजह से हमारे ज़्यादातर परिचित जम्मू चले गए हैं और हम उळ्टे जम्मू से यहाँ आ गए हैं. तेरे पापा की तो बुद्धि ही निराली है.”“बस भी करों सुनीता, अभी तो अनु घर पहुंची है और तुम शुरू हो गईं. इस घर में अनु के बाबा की यादें हैं, उनके सपने हैं. इस घर को कैसे छोड़ देता.’“पापा हमने जो किताबें कल रिज़र्व कराई थी, कोई और ले गया.”अनु ने अपनी परेशानी बताई.“कोई बात नहीं, मेरी बेटी अपनी बुद्धि से लिख सकती है. कॉफी तैयार है, तेरा ही इंतज़ार कर रहा था.”“थैंक यूं पापा, वैसे प्रोफ़ेसर अरमान ने कहा है, वो मेंरे लिए किताब ढूँढने की कोशिश करेंगे.”“ये तो अच्छी बात है. मुझे पूरी उम्मीद है तेरा काम बन जाएगा.”“अनु क्या तू पागल हो गई है, किस अरमान की बात कर रही है ? इस कौम का कोई भरोसा नहीं. इनसे दूर रहने में ही भलाई है.”सुनीता ने गुस्से से कहा.“सुनीता, तुम बेकार डरती हो, सब इंसान एक से नहीं होते. हर एक को शक की निगाह से देखना गलत बात है. हर धर्म और जाति में अच्छे और बुरे दोनो तरह के लोग होते हैं.”पापा ने समझाना चाहा.“आप बाप और बेटी को समझाना ही बेकार है.”नाराज़ सुनीता किचेन में चली गई.“अनु, पब्लिक लाइब्रेरी से एक अच्छी बुक मिली है. बहुत से क्रिटिक्स ने कीट्स पर अपने विचार दिए हैं. क्या बुक अभी पहुंचा दूं या सवेरे तक इंतज़ार कर सकती हो?” रात के आठ बजे अरमान का फोन आया था.“ओह, थैंक्स, वैसे तो बुक अभी मिलने से मै रात में काम कर सकूंगी, पर शायद आपको तकलीफ होगी, कल सवेरे का बेसब्री से इंतज़ार करूंगी. एक बार फिर शुक्रिया.”अनु की आवाज़ में खुशी थी.“मेरी तकलीफ के लिए परेशान ना हों, आपके घर के पास ही हूँ, उम्मीद है, किताब आपकी मुश्किल हल कर देगी. दस मिनट में पहुँच रहा हूँ.”“पापा, प्रोफ़ेसर साहब को एक किताब मिली है, वो अभी देने आ रहे हैं.”अनु ने खुशी से कहा.“अनु बेटी, ये तो तेरी ज्यादती है, उन्हें इस वक्त तकलीफ़ दे रही है.”“पापा, प्रोफ़ेसर साहब ने कहा, वो कहीं हमारे घर के पास ही हैं और फिर उनके पास कार भी तो है.” अनु ने भोलेपन से कहा.डोर -बेल पर अनु के पापा ने दरवाज़ा खोला था. उनके पीछे अनु भी आई थी.‘गुड ईवनिंग, सर. आपकी साहिबजादी के लिए किताब लाया हूँ. उम्मीद है, इससे उनका काम चल जाएगा. किताब सात-आठ दिनों तक रख सकती हैं. अब मै चलता हूँ.” किताब देते अरमान वापिस जाने को मुड़ा था.“थैक्स, मेरी पागल बेटी ने आपको भी परेशान कर दिया. आप घर में तशरीफ लाइए. मेरी बेटी की आप इतनी हेल्प कर रहे हैं, कम से कम चाय या कॉफी तो ले सकते हैं.”“आज नहीं, घर में अम्मी भी इंतज़ार कर रही है, वैसे आपकी बेटी की मदद करने की एक वजह ये है कि इनकी तरह मुझे भी जब क्लास में कोई काम मिलता था तो सबसे अच्छे काम का रिमार्क पाने के लिए ऐसे ही बेचैन हो जाता था. आज अनु जी में भी वही जज़्बा दिखाई दिया.”अनु की ओर मुस्करा कर देखते हुए अरमान ने कहा.“पापा, सर की अम्मी को हमारे घर के फूल बहुत अच्छे लगते हैं, सर से कहिए वो अपनी अम्मी के साथ हमारे यहाँ आएं.”“ये तो तूने अच्छी बात कही, प्रोफ़ेसर साहिब आप अपनी अम्मी के साथ कभी तशरीफ ज़रूर लाएं, हमें बहुत खुशी होगी.”डॉ.मट्टू ने कहा.“ज़रूर, ये वादा रहा. अम्मी तो इन फूलों पर कोई नज्म ही लिख डालेंगी. मेरी अम्मी शायारा हैं. आप से एक गुजारिश है, आप मुझे प्रोफ़ेसर न कहें, आपके बेटे की तरह हूँ, मुझे आप अरमान ही कहें तो खुशी होगी.” गुड नाइट कह कर अरमान चला गया.किताब पाकर अनु खिल उठी, पूरी रात किताब से नोट्स बनाती रही. रात भर काम करती अनु को देख उसके पापा ने प्यार से समझाना चाहा-“अब तेरी किताब कहीं भागी तो नहीं जा रही है. अभी पेपर जमा करने के लिए दो दिन का समय है. रात भर जागेगी तो तबियत खराब हो जाएगी.’“इतनी अच्छी किताब है कि इसने तो हमारी नीद ही उड़ा दी. आप परेशान न हों, हमें कुछ नहीं होगा.”सवेरे तक अनु आधा पेपर तैयार कर चुकी थी. चेहरे पर रात की थकान का कोई चिह्न भी नहीं था. मोबाइल पर अरमान की कॉल थी-“कहिए अनु जी, किताब आपके कुछ काम की रही या मेरी मेहनत बेकार गई.”“आपकी किताब तो इतनी अच्छी है कि अब हमें पूरा यकीन है कि हमारा पेपर बेस्ट होगा.”अनु की आवाज़ में खुशी छलकी पड़ रही थी.“वो तो होना ही चाहिए, टॉपर लड़की का पेपर भी बेस्ट ही होगा.”“आपको कैसे पता हम क्लास में टॉप करते हैं?”अनु विस्मित थी.“इतने स्टूडेंट्स से साबका पड़ता है, बातों से ही उनकी काबलियत समझ जाता हूँ.”“तब तो आप सचमुच अच्छे प्रोफ़ेसर हैं. आपके स्टूडेंट्स आपको बहुत प्यार करते होंगे.”“ये बात तो पता नहीं, पर मेरी बातें कुछ को अच्छी नहीं लगतीं. वैसे यूनीवर्सिटी जाते वक्त आपको पिक- अप कर सकता हूँ, आपका क्लास किस वक्त है?”“नहीं-नहीं, आप क्यों तकलीफ करेंगे, हम तो रोज़ जाते ही हैं. आपको तो अपने क्लास के टाइम से जाना होगा, हमारा क्लास तो दस बजे शुरू हो जाता है.’“आप शायद नहीं जानतीं, दो महीनों में थीसिस सबमिट करनी है, इसलिए रेफरेंस बुक्स पढने के लिए मै रोज़ दस बजे लाइब्रेरी जाता हूँ. आप तैयार रहें, मै गेट पर पहुँच कर कॉल करूंगा.” बात खत्म करके अरमान ने फोन काट दिया. अनु असमंजस में पड़ गई, क्या अरमान सर के साथ जाना ठीक होगा? मम्मी को तो यह कतई अच्छा नहीं लगेगा, पर मना करने का भी तो कोई वाजिब कारण नहीं है. जो भी हो उसे तैयार तो होना ही है. आज पानी बरस रहा है, इस कारण पापा से अरमान जी के साथ जाने की इजाज़त ज़रूर मिल जाएगी.अनु का अनुमान ठीक ही था.“ये तो अरमान की शराफत है, मौसम खराब देख कर तुझे लिफ्ट दे रहा है. कल भी तेरे लिए कितनी मुश्किल उठाई. मुझे हमेशा से टीचिंग प्रोफेशन वालों पर यकीन रहा है लौटते वक्त अगर तू अरमान के साथ आए तो उसे घर ले आना, उस दिन तो दरवाज़े से ही लौट गया था.”.पापा ने इजाज़त दे कर कहा.अरमान की कॉल सुनते ही अनु बाहर आ गई. गुलाबी सलवार-सूट में वह खिले फूल से दिख रही थी.“गुड मॉर्निंग, सर. आज फिर आपको तकलीफ दे रही हूँ.”हलकी मुस्कान के साथ अनु बोली.‘अगर ये तकलीफ है तो खुदा से दुआ ‘करूंगा ऎसी प्यारी तकलीफ रोज़ दें.’ मज़ाक के लहजे में कही गई बात ने अनु का गोरा चेहरा लाल कर दिया.यूनीवर्सिटी पहुँच कर अनु ने कहा –“आपके साथ हम भी लाइब्रेरी चलेंगे, हो सकता है कल वाली किताब भी मिल जाए”“मान गया आप तो मुझ से भी चार हाथ आगे हैं, जब तक वो किताब नहीं मिल जाती, आपको तसल्ली नहीं होगी, कहीं ऐसा न हो कोई प्वाइंट छूट जाए.’अरमान हंस रहा था..“इसका मतलब आप भी ऐसे ही थे, सर?”“एक बात कहना चाहूंगा, आप मुझे सर न कहें, सर कहने से अपने को बुज़ुर्ग महसूस करता हूँ. उम्र में आपसे बस दो-तीन साल ही बड़ा होऊंगा, दो-तीन महीनों में एम ए कम्प्लीट करते ही आप भी लेक्चरार बन जाएंगी. टॉपर्स को तो उनके डिपार्टमेंट में नौकरी मिल ही जाती है. अच्छा-भला सा नाम है मेरा, अरमान कहना मुश्किल तो नहीं है.”“आपका नाम लेना क्या ठीक होगा, सर?”विस्मित अनु ने पूछा.‘’जी हाँ, वही ठीक होगा. मै भी आपको बस अनु कहूंगा, नाराज़ तो नहीं होंगी?”“बिलकुल नहीं, बल्कि हमें अच्छा लगेगा.”“तो यही तय रहा, हम दोनों एक-दूसरे का नाम ही लेंगे. शाम को कब फ्री होगी, अगर उसी वक्त मै भी फ्री हुआ तो आप मेरे साथ चल सकती हैं.’“आज तो बस दो बजे तक ही क्लास है, आप हमारे लिए परेशान न हों.”‘”ये बार-बार परेशानी या तकलीफ जैसे लफ्जों का इस्तेमाल न करें तो बेहतर है. आपका घर मेरे रास्ते में पड़ता है, मेरी कार को कोई एक्स्ट्रा काम नहीं करना पड़ता है. आप दो बजे के बाद यहीं आ जाइएगा. आपका इंतजार करूंगा.”“ठीक है, पर आज आपको हमारे घर रुकना पडेगा, पापा ने आपको बुलाया है.’“आपके पापा से मिलना और बात करना मेरी खुशकिस्मती होगी.”अनु के साथ अरमान को आया देख कर अनु के पापा खुश हो गए.“आओ बेटा, मुझे खुशी है, तुम मेरे लिए वक्त निकाल सके. अनु, अपने सर के लिए कॉफी तो लाओ. जानते हो अरमान, हमारी बेटी कॉफी बहुत अच्छी बनाती है.”प्यार से अनु को देखते पापा ने कहा.“जी पापा, अभी लाई, वैसे आपने इतनी तारीफ़ की है पता नहीं आज कैसी बनेगी.”अनु संकोच से बोली.“आप से मिलने के लिए तो मेरे पास वक्त ही वक्त है. अब्बा के न रहने से किसी बुज़ुर्ग की कमी बहुत खलती है. अनु ने बताया आप जम्मू में प्रिंसिपल थे. अब्बा अक्सर अपने दोस्तों से मिलने जम्मू जाते थे. हमारे बहुत से अच्छे दोस्त यहाँ के बिगड़ते हालात की वजह से जम्मू या दिल्ली चले गए हैं.”“तुम्हारे अब्बा भी क्या प्रोफ़ेसर थे.”“जी हाँ वह उर्दू डिपार्टमेंट के हेड थे, अपने दोस्तों को वह बहुत मिस करते थे.’“ठीक कह रहे हो, अरमान. कब सोचा था इस फूलों की वादी में बम और गोलियां चलेंगी. कभी लगता है, झेलम का पानी भी मटमैला हो गया है.”मट्टू जी ने उदासी से कहा.“अरे आप तो अब्बू के अलफ़ाज़ बोल रहे हैं, अब्बू इन हालात की वजह से बेहद गमगीन रहते थे.”“अरमान बेटे तुम किस टॉपिक पर पीएच डी कर रहे ह?.”जी मेरा सब्जेक्ट जमाल सुलतान जेनुल आबदीन बडशां और सुलतान सिकंदर की तर्ज़े हुकूमत में डिफरेंसेस पर है. मेरा काम करीब-करीब पूरा हो गया है, अब जल्द ही थीसिस जमा करनी है,”“तुम्हारे ख्याल में दोनों में से किसे बेहतर माना जाना चाहिए?”“मुझे सुलतान जेनुल आबदीन ज़्यादा पसंद हैं. उनका दौर अमन, सुकून, तरक्की और खुशहाली का दौर था. उन्होंने कश्मीरियों के सदियों पुराने भाईचारे पर जोर दिया. सुलतान सिकंदर के दौर में बेचैनी. अफ़्रातफ़्ररी और कशमकश का दौर था. असल में दोनों की आइडियोळॉजी अलग थी.’“मुझे तुम्हारे ख्यालात जान कर खुशी हुई. मै ने भी उन दोनों के बारे में जितना पढ़ा है, तुम्हारे फैसले से सहमत हूँ. मुझे उम्मीद है तुम्हारे विचारों से स्टूडेंट्स को सही राह मिल सकेगी.“मेरी तो यही कोशिश है, पर आजकल पड़ोसी मुल्क से आए कुछ नौजवान हमारे स्टूडेंट्स को गुमराह कर रहे हैं. उन्हें भड़का कर माहौल मे ज़हर घोलने की कोशिश कर रहे हैं. वे हमारे विचारों से इत्तेफाक नहीं रखते.”अरमान ने गंभीरता से सच्चाई बयान की थी.“कोई बात नहीं, सच की हमेशा जीत होती है, वे भी सही-गलत में फर्क समझ जाएंगे.. लो कॉफी आ गई.’ अनु कॉफी के साथ आ गई थी. अरमान को कॉफी दे कर अनु ने पापा को कॉफी थमाई.“आपकी कॉफी कहाँ है, अनु?”अरमान ने पूछा.“हम कॉफी नहीं पीते.”भोलेपन से अनु ने जवाब दिया.“तो क्या दूध पीती हैं?” बचपन में जब कहवा पीने की जिद करता था मेरी अम्मी कह्ती थीं, कहवा पिएगा तो काला हो जाएगा. कहीं आपके साथ भी तो ऐसा ही नहीं है?”अरमान मुस्कुराया.अरमान की बात पर पापा जोर से हंस पड़े और अनु शर्मा गई. अरमान की बात में सच्चाई जो थी.“कभी अपनी अम्मी के साथ तशरीफ लाइए. उनकी शायरी का हम भी आनन्द लेंगे. अरमान को विदा देते डॉ मट्टू ने कहा-”“ज़रूर, अम्मी भी आप सबसे मिल कर बहुत खुश होंगी. अगर आप इजाजत दें तो अनु रोज़ मेरे साथ.क्लास के लिए जा सकती हैं. इस तरह से आप भी इनकी ओर से बेफिक्र हो सकते हैं.”“ये तो तुम्हारा हम पर एहसान होगा, वरना इसके आने में ज़रा सी देर हमें घबरा देती है,”सुनीता को अरमान का ये प्रस्ताव ज़रा भी नहीं भाया. पति से नाराज़ ओ कर कहा था[“तुम तो भोले बाबा हो, जवान लड़की को एक नौजवान विधर्मी के साथ भेजने का क्या अंजाम हो सकता है, कुछ तो सोचा होता. इस अरमान पर एक दिन में इतना भरोसा कैसे हो गया?”“परेशान मत हो, सुनीता, मेरा अनुभव कहता है, अरमान एक निहायत शरीफ लड़का है. इस शनीवार को वह अपनी अम्मी के साथ आएगा, तुम खुद मेरी बात से सहमत हो जाओगी.”“मुझे इस कौम पर कतई विश्वास नहीं है. याद नहीं हमारे रैना भाई और पंडित जी इसी कौम के शिकार बन कर अपनी जान से हाथ धो बैठे.”सुनीता ने दुःख भरी आवाज में कहा.“देखो सुनीता, अब हालात सुधर रहे हैं, मुझे विश्वास एक दिन वादी में खुशियाँ लौटेंगी, फिर फूल खिलेंगे”“भगवान् करे तुम्हारा विश्वास सच हो, तुम्हारी बातों से तो कोई जीत नहीं सकता..”सुनीता चुप रह गई.शनीवार को अरमान अपनी अम्मी के साथ आया था. अरमान की अम्मी शाहिदा बेगम एक सुलझी हुई पढी-लिखी महिला थीं. शायरी से उनका बहुत लगाव था. जब तक उनके शौहर उनके साथ थे वह मुशायरों में भी अपनी नज्में सुनाती थीं. घर के भीतर आने के पहले शाहिदा बेगम फूलों के पास रुक गईं. उनकी मुग्ध दृष्टि फूलों पर निबद्ध थी. अनु उन्हें फूलों के नाम और उनकी क्वालिटी बता रही थी.“अम्मी पहले.हम घर के भीतर चलें, अंकल और आंटी हमारी वजह से बाहर खड़े हैं” अरमान ने कहा-“माफ़ करें ये फूल इतने खूबसूरत हैं कि इनसे नज़र हटाने की तबियत ही नहीं होती,”घर के भीतर पहुंची शाहिदा बेगम ने अपने दिल की बात कही.“अम्मी फूल बस देख कर ही मन भर लो, मांगने की गलती मत करना. अनु को शाख से फूल तोड़ना अच्छा नहीं लगता.”अरमान ने कहा.“ऎसी बात नहीं है, अम्मी के लिए फूल चुन कर देने में हमें बहुत खुशी होगी.”अनु बोली.“इसीलिए हम अनु बेटी के लिए अपने हाथ की कशीदाकारी की हुई चुन्नी लाए हैं.”शाहिदा बेगम ने एक बसंती रंग की चुन्नी अनु को देते हुए कहा.“शुक्रिया, अम्मी जी, ये तो बहुत ही खूबसूरत चुन्नी है. इतनी अच्छी कशीदाकारी आप कैसे करती है?”‘“प्रैक्टिस से तुम भी ऐसे ही कशीदाकारी कर सकती हो.. मुझे खुशी है तुम्हें मेरी कढ़ाई अच्छी लगी खूबसूरत लड़की के लिए चुन्नी भी खूबसूरत ही होनी चाहिए. तुम्हारी शादी पर लाल चुन्नी पर कढाई कर के दूंगी.”शाहिदा बेगम ने हंस कर कहा.अनु का चेहरा शर्म से सिंदूरी हो उठा. ‘अब चाय-कॉफी हो जाए उसके बाद बेगम साहिबा की नज्में सुनी जाएं. अनु के पापा ने कहा.सुनीता ने जलपान के लिए कई चीजें बना रखी थीं. अरमान और शाहिदा बेगम ने बड़े चाव से जलपान किया. उसके बाद शाहिदा बेगम ने अपनी कुछ नज्में सुनाईं. उन नज्मों में वादी की बिगडती हालत का दर्द था, जहां बारूद के धुंएं से चिड़ियाँ गीत गाना भूल गईं, चिनार और फूल मुरझा गए थे.नज्में सुन कर सबके दिल उदास हो गए. उदासी दूर करने के लिए पापा ने अनु से एक गीत सुनाने को कहा. कुछ संकोच के साथ अनु ने अपनी मीठी और सधी आवाज़ में एक कश्मीरी लोक गीत सुनाया. सब मन्त्र-मुग्ध सुनते रह गए. अपने चहरे पर अरमान की नज़र निबद्ध देख अनु की रंगत गुलाबी हो उठी.“सच, अनु बेटी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है. मान बेटा, इसकी ठीक ही तारीफ़ करता है अल्लाह इसे हमेशा खुश रखे..”प्यार से अम्मी ने कहा.“वापसी के समय अनु ने अरमान की अम्मी को ढेर सारे सुन्दर फूल देकर उनको खुश कर दिया. अनु के माथे को चूम उसे दुआएं दे कर वे दोनों विदा हुए. रात में अनु सोचती रही, अरमान उसकी क्या तारीफ़ करता है, उसमें ऐसा क्या है? जो भी हो, वह बहुत खुश थी.दूसरे दिन अरमान के साथ क्लास के लिए जाती अनु को अरमान ने छेड़ा था-“कल रात तो शाख से जुदा हुए अपने फूलों के लिए खूब आंसू बहाए होंगे, वैसे सौदा कुछ बुरा नहीं रहा. फूल दे कर एक खूबसूरत लड़की ने अम्मी का दिल जीत लिया.”अरमान मुस्कुरा रहा था.“अच्छा हमने सौदा किया था, वैसे जनाब हमने फूल खुशी से दिए थे तो रोते क्यों?”“खुदा न करे आपकी आँखों में कभी आंसू आएं, हमेशा हंसती रहें.”अरमान गंभीर हो गया.दिन बीतने लगे अरमान और अनु साथ आते-जाते अनायास ही एक-दूसरे के करीब आते गए. दोनों एक-दूसरे के साथ जैसे अपने को सहज और पूर्ण पाते थे.एक दिन अनु को उसके घर छोड़ने के बाद अपने घर लौटते अरमान की कार के सामने दो मोटर बाइक पर सवार कुछ लड़कों ने मोटर बाइक कार के सामने ऐसे रोकी कि अरमान को अपनी कार रोकनी पड़ी.“ये क्या तमाशा है, अगर कार नहीं रोक पाता तो क्या अंजाम होता, सोचा है.”नरमी से अरमान ने कहा.’“अरे अंजाम हमें नहीं तुझे सोचना है. ये कश्मीरी भाईचारे, अमन और सुकून वाली फिजूल की बातें कर के अपने वतन से गद्दारी कर रहा है.”एक लड़के ने कड़ी आवाज़ में चेतावनी सी दी.“अपनी नापाक जुबांन बंद रख या अंजाम के लिए तैयार हो जा.” दूसरे ने गुस्से से कहा.“तेरे सर पर जो इश्क का बुखार चढा है, उसे उतारते हमें देर नहीं लगेगी, सम्हल जा इशक्जादे. हमारी चेतावनी याद रखना, वरना अंजाम ऐसा खतरनाक होगा जिसकी तू सोच भी नहीं सकता .”तीसरे ने नफरत से कहां.उनके जाने के बाद अरमान ने कार स्टार्ट की थी. कुछ दिन पहले क्लास के बाहर भी उसने कुछ ऐसे ही रिमार्क्स सुने थे, उसके दोस्तों ने भी कहा था, उसे ऐतिहात बरतनी चाहिए. उन तीनों का इशारा उसके और अनु के साथ की तरफ भी था. अरमान की ज़िंदगी में अब अनु के लिए एक ख़ास जगह बन चुकी थी, उसके बिना उसे अपना वजूद अधूरा लगता था. वक्त आ गया है, उसे अपने और अनु के रिश्ते के बारे में संजीदगी से सोचना चाहिए. कुछ देर में ही उसने सोच लिया, वह इन धमकियों से डरेगा नहीं.दूसरी सुबह अरमान रोज़ की तरह से अनु को पिक- अप करने पहुंचा था. अनु से किसी भी बात का ज़िक्र न करने की उसने सोच रखी थी.अरमान की आँखों में अनु के लिए प्यार साफ़ झलकता था और अनु अपनी आँखें शायद इस डर से झुकाए रहती कि कहीं उसकी आंखों में अरमान अपने लिए उसकी चाहत न पढ़ ले. अरमान ने अपनी थीसिस सबमिट कर दी और अनु के फाइनल एक्जाम शुरू होने वाले थे. अचानक एक दिन अरमान ने अनु के हाथ पर अपना हाथ धर कर कहा-“अनु. तुमसे बेहद प्यार करने लगा हूँ. शायद यह उसी दिन शुरू हो गया था जब किताब न मिलने पर तुम्हारे मासूम चेहरे पर उदासी के बादल छाए हुए थे. उस चहरे पर बहुत प्यार हो आया था और ये अरमान, पागल की तरह तुम्हारे लिए किताब ढूँढने के लिए चक्कर लगाता रहा. बहुत कोशिश करने पर भी ये दीवाना दिल मेरी बात नहीं सुनता.”“प्लीज अरमान, ऎसी बातें न करें, हमें डर लगता है. शायद हमें अब मिलना नहीं चाहिए.’“सच कहो, क्या मुझसे मिले बिना रह पाओगी?तुमसे प्यार का सिलसिला तुम्हारी अनोखी बातों से बढ़ता ही गया, शाख पर खिले फूलों को तोड़ने का दर्द, ज़मीन पर झरे फूलों की पंखुरियों से कोलाज़ की कल्पना, ऐसे नाज़ुक दिल वाली लड़की तो बस अनु ही हो सकती है. ऎसी प्यारी लड़की के पीछे कौन पागल न हो जाए.”अनु की आँखों में सीधे देखते अरमान ने कहा..“तुम्हारे बिना रहने की बात सोच भी नहीं सकती, पर कोशिश तो करनी ही होगी, जिस बात का कोई नतीजा न निकले, उसे बार-बार दोहराने से भी तो कोई नतीजा नहीं मिलेगा, अरमान. काश हम मिले ही न होते.”अनु उदास हो गई.“तुमसे मिलना तो मेरी ज़िंदगी का सबसे ज़्यादा खुशनुमा एक्सपीरिएंस है, अनु. तुमसे पहले कभी किसी लड़की की और किसी तरह का भी खिचाव महसूस नहीं किया. हम दोनों बालिग़ हैं अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद लेने का हमें हक़ है. बस तुम्हें हिम्मत रखनी है.”“नहीं, अरमान, हमारे पेरेंट्स हमारे प्यार को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. चाह कर भी हम कुछ नहीं कर सकते.”.अनु उदास थी, क्या वह अरमान के बिना खुश रह सकेगी?“तुमसे निकाह के बाद भी तुम्हे अपना धर्म बदलने की ज़रुरत नहीं होगी, तुम्हे अपनी मर्जी से चलने की पूरी आजादी होगी, अनु. अम्मी भी इस बात के लिए राजी हैं.’अरमान सीरियस था.“अभी हम कुछ भी सोचने-समझने की स्थिति में नहीं हैं. ज़िंदगी का इतना बड़ा फैसला लेने की हिम्मत नहीं है, अरमान. मुझे माफ़ करो.”अनु की आँखें छलछला आईं .कार से उतरी अनु अपे डिपार्टमेंट की तरफ बढी ही थी कि उसके पाँव के पास एक ज़ोरदार बम जैसा धमाका हुआ था. दहशत से अनु अरमान का नाम लेती गिर पड़ी. अरमान अभी लाइब्रेरी की ओर बढ़ा ही था कि अनु की आवाज़ कान में पड़ी. तेज़ी से भाग कर अरमान अनु के पास पहुंचा था“क्या हुआ, अनु, ठीक तो हो?’तभी अनु के पास पड़े बम वाले पटाखे के कागज़ पर नज़र पड़ी थी.“हम पर किसी ने बम फेंका था, अरमान. हमें डर लग रहा है.”अनु अरमान से लिपट कर रो पड़ी.“नहीं, अनु. ये देखो किसी ने मज़ाक किया था. ये तो मामूली पटाखा है.” अरमान ने अनु को तसल्ली देने की कोशिश की थी. चारों तरफ नज़र दौडाने पर कोई नज़र नहीं आया, पर सरमान पटाखे से दिया गया संकेत समझ गया. प्यार से सहारा दे कर अनु को अरमान अपने साथ ले गया..“कल से तुम्हारे एक्जाम शुरू हो रहे हैं, जो हुआ, उसे भूल जाओ और एक्जाम पर ध्यान दो. याद रखना मेरी अनु को टॉप करना है. हाँ एक्जामिनेशन हौल तक पहुंचाने और लाने के लिए आपका ये ड्राइवर अपनी ड्यूटी पर वक्त से हाज़िर रहेगा. विश यू गुड लक.”अरमान ने मज़ाक किया.घर पहुंचे अरमान की अम्मी बेहद तनाव् में थीं. अरमान को देख कर जैसे उनके चेहरे पर कुछ सुकून सा आगया था.“तुम कहाँ रह गए थे, मान बेटा? मेरी तो जान ही निकल गई थी..”“ऐसा क्या हुआ, अम्मी, रोज़ ही तो इस वक्त पर घर पहुंचता हूँ.”“कुछ ठीक नहीं है. क्या तू नहीं जानता, कुछ लोग तेरी जान के पीछे पड़े हैं. तूने कभी नहीं बताया तुझे कितनी ही धमकियां दी जा चुकी हैं.’“इन गीदड़ भभकियों से क्या डरना? मै सच्चाई की राह पर चलता हूँ, अपने स्टूडेंट्स को भी सही राह दिखलाने की कोशिश करता हूँ. उन्हें समझाना चाहता हूँ, खून-खराबे से कुछ नहीं मिलता. असल में बाहर से आए कुछ गुमराह नौजवान हमारे स्टूडेंट्स को भड़का रहे हैं, वादी में नफरत का ज़हर घोल रहे हैं..”“तेरी बात समझती हूँ, पर इन हालात में ऐतिहात बरतने की ज़रुरत है, मान बेटा.”“जी, अम्मी आप परेशान न हों, मै ख्याल रखूंगा.”संजीदगी से अरमान ने कहा.अपने कमरे में आकर अरमान सोच में पड़ गया. कुछ दिनों से लड़के उसे देख कर उलटे-सीधे रिमार्क्स दे रहे हैं. ग्रुप बना कर अरमान की और इशारे कर के बातें करते हैं. काफिर की लौंडिया से इश्क फरमा रहा है, ये मुल्क का गद्दार हमारे मज़हब का दुश्मन है, जैसी बातें उसे कुछ हमदर्द लोगों ने इशारों में बताने की कोशिश की थी, पर अरमान उन बातों से उदासीन ही बना रहा.आज अनु के एक्जाम्स खत्म हो रहे थे नियत समय पर अरमान अनु को एक्जामिनेशन हौल से घर पहुँचाने के लिए आ गया था. अरमान एक्जामिनेशन हौल के बाहर कार में अनु की प्रतीक्षा कर रहा था कि तभी एक मुड़ा -तुड़ा कागज़ उसकी गोद में आ गिरा. खोलने पर चंद लाइनें थीं. ‘बहुत हो गया, अगर सलामती चाहते हो तो अपनी नापाक जुबांन बंद रखो और उस काफिर की लौंडिया से दूर रहो, वो और उसके घर वाले, सब हमारे हमारे निशाने पर है. बस एक दो दिन और पहले वो लड़की फिर सबका काम खत्म- - - सम्हळ जाओ वरना तुम भी बेमौत मारे जाओगे.“अरमान सन्नाटे में आ गया. क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. अनु को सावधान करना ठीक नहीं होगा, वह डर जाएगी. हाँ उसकी हिफाज़त के ख्याल से उसे घर के भीतर तक तो वह छोड़ कर आ ही सकता है. इतना ही कहना काफी होगा, एक्जाम के बाद वह कुछ दिन आराम करे, घर से बाहर ना निकले. वैसे उसे आज ही एस. पी. पुलिस से बात करनी होगी, वह अब्बू के दोस्त हैं. अनु और उसके घरवालों की हिफाज़त कर सकते हैं. लौटते वक्त अनु काफी खुश थी. उसका पेपर बहुत अच्छा हुआ था.“अरमान लगता है तुम्हारी बेस्ट विशेज काम आ रही हैं, मेरा पेपर बहुत अच्छा हुआ .”“मै जानता हूँ, मेरी बेस्ट विशेज के बिना भी तुम टॉप ज़रूर कर सकती हो, अनु, मै दिल से चाहता हूं, मेरी दुआएं ज़रूर सच हों. तुम लेक्चरार बन कर मेरी तरह से वादी में अमन-चैन लाने में मेरी मदद करो.”अरमान गंभीर था.“हम इतना बड़ा काम कैसे कर सकते हैं, अरमान?”अनु विस्मित थी.“मेरे ख्याल में हमारी नई जेनरेशन अगर सही-गलत में फर्क समझने लग जाए तो ये काम बहुत आसानी से हो सकता है. प्यार में कितनी ताकत होती है, ये बात तुम अपने स्टूडेंट्स को ज़रूर समझा सकती हो. ये काम हम जैसे सही सोच वाले लोग ही कर सकते हैं, अनु और मुझे तुम पर बहुत यकीन है,.”अनुत्तरित अनु अरमान के गंभीर चेहरे को मौन देखती रह गई. पता नही, अरमान आज कैसी बातें कर रहा था. क्या वह सचमुच वादी में अमन और खुशी ला सकती है?अचानक अरमान को याद आया, आज अम्मी का बर्थ डे है, उसने कोई गिफ्ट भी नहीं ली है,“शुक्रिया अरमान, हमें रोज़ ठीक टाइम पर पहुंचाने और वापस लाने के लिए तो आप इनाम के हकदार हैं” घर पहुंची अनु ने हंस कर कहा. कार से उतरती अनु के साथ अरमान भी उतर आया.“अरे क्या तुम घर नहीं जा रहे हो, तुम्हारी अम्मी इंतज़ार कर रही होंगी.”“आज अम्मी का बर्थ- डे है, उनके लिए फूल सबसे अच्छी गिफ्ट होंगे. क्या अम्मी के लिए दो गुलाब दे सकती हो,? अरमान फूलों की क्यारी के पास रुक गया था.“अरे दो क्यों हम अम्मी के लिए बड़ा सा बुके बना कर देंगे. बताओ, उम्हें कौन से रंग के गुलाब ज़्यादा पसंद हैं.”अनु उत्साहित हो उठी थी.“अम्मी को सफ़ेद रंग पसंद है इसलिए सफ़ेद गुलाबॉ का बुके अच्छा रहेगा.”“अगर हमें पहले से पता होता आज अम्मी जी का बर्थ डे है तो हम उनके लिए कोई अच्छी सी गिफ्ट लाते. अम्मी जी की गिफ्ट उधार रही. हम खुद जाकर उन्हें गिफ्ट देंगे.”अनु के साथ अरमान सफ़ेद गुलाबों की क्यारी के पास खडा था. अनु उसके पास ही खड़ी गुलाब चुन रही थी, अचानक तेज़ रफ़्तार से आती मोटर बाइक पर बैठे दो नकाबपोशों पर अरमान की नज़र पड़ी थी तेज़ी से अनु को खींच कर जैसे ही अपने पीछे किया दो-तीन गोलियां अरमान के सीने में आ लगीं. विस्फारित नयनों से अरमान के शरीर को फूलों पर गिरता देखती अनु पत्थर बन गई. उसकी जान बचाने के लिए अरमान अपनी जान पर खेल गया था.. गोलियों की आवाज़ पर पापा भागते आए थे. अनु को झकझोर कर चैतन्य करना चाहा था.“पापा, अरमान ठीक हैं, अरमान आँखें खोलो, हमारी आवाज़ सुन रहे हो न अरमान?”अनु ने मनुहार की.“अपने को सम्हाल, अनु. अरमान चला गया है, बेटी.”अनुभवी पापा ने रुंधे स्वर में कहा.“नहीं वो ऐसे नहीं जा सकते, अभी कुछ देर पहले तो अरमान ने कहा था, हम दोनों को मिल कर वादी में अमन लाने का एक बड़ा काम करना है. अरमान को अपना काम पूरा करना है.”कुछ राहगीर और आसपास के घरों से कुछेक लोग आ गए थे. किसी ने मोबाइल से एम्बुलेंस और पुलिस को खबर कर दी थी. एम्बुलेंस पर अरमान के नश्वर शरीर को स्ट्रेचर पर ले जाया जा रहा था.बहते आंसुओं को हथेली से पोंछ अनु ने संकल्प लिया, नहीं वह रोएगी नहीं, जाते-जाते अरमान ने उसे जो काम दिया है, उसे पूरा करेगी. दृढ़ता से ओंठ भींच, अनु एम्बुलेंस में अरमान के साथ हॉस्पिटल जाने को बैठ गई.अरमान का रक्त-रंजित शरीर ज़मीन पर झरे सफ़ेद गुलाब के फूलों पर लाल रंग का कोलाज बना गया था. 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