Monday, 20 April 2020

मनमीत Manmeet Hindi Story

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गरमी की छुट्टियों के बाद आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय खुला था. उत्साहित युवा लड़के- लड़कियां हंसते-मुस्कुराते अपने-अपने विभागों की ओर जारहे थे. नए विद्यार्थी दादा टाइप युवकों की अपने ऊपर की गई मजाकिया टिप्पणियों से कुछ डरे हुए अपना विभाग खोज रहे थे. हिन्दी विभाग के आगे काफी संख्या में छात्र-छात्राएं जमा थीं. लडकों के बीच हलचल का एक विशेष कारण यह भी था कि अब एम ए प्रीवियस के नए सत्र से उनकी कक्षा में लडकियां भी उनकी साथी होंगी.

स्नातक उत्तीर्ण करने तक विश्वविद्यालय में लड़कियों की कक्षाएं वीमेंस विंग में होती थी, एम ए प्रीवियस से सह शिक्षा का प्रावधान था. इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों की उत्सुकता का एक विशेष कारण नोटिस बोर्ड पर अंकित एक नाम था,  कौन है यह गीता रानी जो मॉरीशस से हिन्दी में मास्टर्स करने इस विश्वविद्यालय में आ रही है. लड़कों का समूह ही नहीं लडकियां भी उस लड़की से मिलने को उत्सुक थीं. अचानक हल्के गुलाबी रंग के सलवार सूट में एक आकर्षक लड़की ने आकर सबको चौका दिया.



“क्षमा कीजिए, आपकी एक बात गलत और एक बात सही है. यह ठीक है कि मै मॉरीशस से आई गीता हूँ,पर मुझमे कोई चमक है, यह बात बिलकुल गलत है. वैसे यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप सबके साथ पढने का अवसर मिला है. आशा करती हूँ, हम सब अच्छे मित्र बनेंगे इसलिए मुझे आप कह कर संबोधित ना करके केवल गीता कहें तो खुशी होगी.” मीठी मुस्कान के साथ गीता ने कहा.













शांत भाव से गीता ने क्लास में अपने बैठने के स्थान पर दृष्टि डाली. कक्षा की पहली बेंच का दांया कोना शायद गीता के लिए ही खाली छोड़ा गया था. शेष पर लडकियां बैठी थीं. धन्यवाद कहती गीता खाली स्थान पर बैठ गई. तभी क्लास- रूम के द्वार पर सफ़ेद कुरते-पाजामे के भारतीय परिधान में एक गौरवर्णीय सौम्य युवक ने कक्षा में आने की अनुमति मांगी. शायद धूप में आने के कारण उसका गौर वर्ण लाल हो कर उसके चेहरे की तेजस्विता बढ़ा रहा था. हाथ में पकड़ा छाता विरोधाभास प्रस्तुत कर रहा था. उसे अपने बैठने के स्थान की खोज करते देख गीता ने खिसक कर उसके बैठने के लिए जगह बना दी. धन्यवाद कहता युवक नि:संकोच गीता के पास बेंच पर बैठ गया.







“क्षमा कीजिए, आप जिन्हें मजदूर कह रहे हैं, वे सम्मानित विजेता हैं. मजदूर कह कर उन्हें अपमानित करने का दुस्साहस मत कीजिए. अपने पसीने और रक्त से उन्होंने विश्व के मानचित्र पर एक स्वतंत्र देश को प्रतिष्ठित किया है. उनके रक्त से सिंचित मिट्टी उनके शौर्य और पराक्रम की प्रतीक है. मुझे गर्व है मैने उन विजेताओं के देश में जन्म लिया है.”उत्तेजना से गीता का सुन्दर गोरा मुख लाल हो गया.




“साथियो, बचपन से मेरे बाबा मझे उनकी जन्मभूमि भारत देश और अपने प्यारे गाँव की अनेकों मीठी कहानियां सुनाया करते थे. मॉरीशस में रहते हुए भी उनकी आत्मा भारत में बसती थी. उनके मुख से कहानियां सुनते हुए मेरा भारत और हिन्दी भाषा से प्यार बढ़ता गया. मॉरीशस में हिन्दी एक लोकप्रिय विषय है. यहाँ बहुत से विद्यार्थी हिन्दी पढ़ते हैं तथा कई प्रसिद्ध हिन्दी के कवि और लेखक हैं. प्रेमचंद की कहानियां जब बाबा को पढ़ कर सुनाती तो वे उनमें खो जाते. तभी मैने हिन्दी भाषा में पोस्ट ग्रेजुएशन करने का निर्णय लिया था.”


“मॉरीशस के लेखकों की रचनाओं के साथ भारत के प्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाएं पढने का अवसर मिला था. महादेवी वर्मा, निराला, सुमित्रानंदन पन्त, बच्चन जी जैसे महान कवियों और धर्मवीर भारती जैसे प्रसिद्ध कहानीकारों का साहित्य इलाहाबाद की हवा में बहता रहा है. इसीलिए मैने इस विश्वविद्यालय में पढने का निर्णय लिया है.”शान्ति से अपनी बात कहती गीता चुप हो गई.











सबके मन में विवेक के लिए आदर था. दूर खडा समर और उसके साथियों का ग्रुप विवेक को सबकी प्रशंसा पाते देख जल रहा था. समर शहर के सीनियर एस. पी. का बिगड़ा हुआ बेटा था, सब पर रोब ज़माना अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानता था. उससे लाभ उठाने के लिए नरेन्द्र, अमानत, महीप और सुरेश जैसे लड़के उसकी जी हुजूरी करते. समर की दृष्टि में विवेक उसका प्रतिद्वंदी बन चुका था.


दूसरे दिन भी गीता ने विवेक के लिए अपने पास की जगह सुरक्षित रखी थी. समर ने उस स्थान पर जब बैठने का प्रयास किया तो गीता उठ कर पास वाली खाली बेंच पर बैठ गई. समर का चेहरा काला पड़ गया. उसका इतना अपमान, ये गीता अपने को क्या समझती है, देख लूंगा इसे. गीता उत्सुकता से विवेक के आने की प्रतीक्षा कर रही थी. विवेक के आते ही उसने आवाज़ दी थी-





विवेक की प्रशंसा से गीता के मुख पर खुशी आ गई. मीता, कला, नीना, नासिरा, और दूसरी लडकियां गीता के भाग्य से ईर्षा करतीं, काश वे भी विवेक के साथ बैठ पातीं. कुछ ही दिनों में उस गंवई गाँव का कहा जाने वाला विवेक अपनी प्रतिभा और सौम्य व्यवहार के कारण लड़कियों और पढाई में रूचि रखने वाले शरद,नीलेश, सलमान अमन, सजल जैसे लड़कों का भी प्रिय मित्र बन गया था.

नए सेशन में पढाई शुरू होगई थी. पढाई के लिए गंभीर विद्यार्थी मनोयोग से पढाई कर रहे थे. बीच –बीच में अपनी व्यंग्यपूर्ण टिप्पणियों से समर पढाई में बाधा डाल प्रोफेसरों की चेतावनी हंस कर टाल देता. अक्सर क्लास के बाद गीता पढाए गए विषय पर विवेक के साथ चर्चा करने रुक जाती. दोनों आपस में काफी सहज हो चले थे. कभी-कभी मीता और दूसरे लड़के और लडकियां भी चर्चा में भाग लेते. विवेक जिस सरलता से किसी कठिन विषय की व्याख्या करता उससे सब प्रभावित होते. चर्चा में विवेक सभी को अपनी बात रखने का अवसर देता, इससे सबके मन में संतोष रहता.





“इलाहाबाद शहर में गंगा, यमुना और सरस्वती तीन नदियों का संगम है. सबसे पहले संगम और पवित्र गंगा नदी देखनी है. बचपन से इसके महत्त्व के विषय में सुनती आई हूँ, मॉरीशस के शिव गंगा सरोवर के जल में पवित्र गंगा जल लाकर मिलाया गया था, सरोवर के निकट एक भव्य विशालकाय शिव की प्रतिमा है.पर्वों के समय इस सरोवर के निकट पूजा संपन्न करने के समय मेला जैसा लगता है. ऐसे त्योहारों पर बहुत आनंद आता था.”गीता जैसे उन यादों में खो सी गई थी.






रात में गीता को नींद नहीं आ रही थी. बचपन में जिस गंगा की पवित्रता और चमत्कार की कहानियां वह बचपन में सुनती आई थी, कल वह स्वयं अपनी आँखों से उसे देख सकेगी. क्या उसका जल सचमुच अमृत सदृश्य होगा. बाबा कहते थे गंगा भगवान् शिव की जटाओं से  निकली हैं. यह बात गीता की समझ से बाहर थी. बड़ी होने पर नदियों के उत्स की सच्चाई जान कर भी बाबा के विश्वास और उनकी आस्था को उसने कभी नहीं झुठलाया. अलार्म बजने के पहले ही गीता तैयार हो कर गेट पर पहुँच गई.




गंगा- तट भक्त जनों से गुलज़ार था. अब आकाश भी उषा की लालिमा से रंजित हो चुका था. सूर्य अपनी सुनहरी रश्मियाँ बिखेरने को झाँक रहा था. पूजा कर रहे पंडितों के मंत्रोच्चार और भक्तों के गीतों से अनोखा वातावरण बन रहा था, उस सौन्दर्य और पावन वातावरण से गीता अभिभूत थी. किनारे पर ही स्त्रियाँ स्नान कर उदित होरहे सूर्य को अर्ध्य दे रही थीं. रंग-बिरंगी नौकाओं में लोग संगम की ओर जारहे थे. गीता बस मौन उस दृश्य को आत्मसात कर रही थी. वाणी को जैसे शब्द ही नहीं मिल रहे थे.”




“नहीं, तुम नहीं समझोगे. यह सत्य है, मॉरीशस के स्वच्छ-सुन्दर सागर लोगों को उल्लास और उमंग भरा आनंद जीने को प्रेरित करते हैं. मेरी दृष्टि में यह उल्लास स्थायी नहीं होता है, पर गंगा तट का यह पावन वातावरण क्षणभंगुर मानव जीवन की सच्चाई उजागर करता है. देख रही हूँ, कितने लोग संगम में अपने प्रिय जनों के अंतिम अवशेष विसर्जित करने आरहे हैं. इस शांत माहौल  में पवित्र भावनाओं के अतिरिक्त दूसरी कोई बात मानस में आ ही नहीं सकती.”गीता ने गंभीरता से कहा.















“गीता, शहर में अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान, दोनों की फ़िल्में लगी हैं. मेरे पास दोनों फिल्मों के फ्री पास हैं. कहो कौन सी फिल्म देखनी है? शहर के सीनियर एस पी साहब यानी पापा के नाम पर फ्री पास आते हैं, पर पापा को फिल्म देखने का समय कहाँ मिलता है. सारी फिल्मों के पास अपने दोस्तों को दे डालता हूँ. जो फिल्म देखने जाता है,फिल्म में फ्री कोल्ड ड्रिंक के मजे लेता है.”शान से समर ने कहा.


























“याद रखना, मुझे सामान्य लड़की समझने की भूल मत करना. इंडिया आने से पहले पूरी तैयारी के साथ आई हूँ. जूडो-कराटे की चैम्पियन रही हूँ. तुम जैसे अच्छे- अच्छों को सीधा कर सकती हूँ. आज तो छोड़ रही हूँ, पर अगली बार कुछ गलती करने की कोशिश भी की तो पुलिस से ऎसी कड़ी सज़ा दिलवाऊँगी जिसे ज़िंदगी भर नहीं भूल पाओगे.”तमतमाए चेहरे के साथ गीता बोली.



बेहद खराब मूड के साथ गीता हॉस्टेल वापिस आई थी. मीता अभी तक फिल्म देख कर वापिस नहीं आई थी.गीता अनायास ही समर की विवेक के साथ तुलना कर रही थी. विवेक के मन में लड़कियों के प्रति सम्मान होता है, उसके साथ वह अपने को कितना सुरक्षित पाती है और एक यह समर और उसके मित्र हैं, जो लडकियों को खेलने की वस्तु समझते हैं, उनके प्रति कुत्सित दृष्टि रखते हैं.






“कभी सोचा भी नहीं कि समर ऐसा भी कर सकता है.  क्लास में उसकी और उसके मित्रों की बातों को हम उनकी शरारतें ही समझते थे, पर अब सावधान रहना होगा. हमारे क्लास की शैली को फिल्मों और बाहर रेस्टोरेंट में मुफ्त में खाने का बहुत शौक है. इसीलिए शैली की समर से अच्छी मित्रता है, उसे समझाना होगा. वह अक्सर समर और उसके मित्रो के साथ रेस्टोरेंट और फिल्म देखने जाती है. मीता गंभीर थी.











दिन पूर्ववत बीत रहे थे. छब्बीस जनवरी आ पहुंची थीं. उस दिन यूनीवर्सिटी में विशेष समारोह आयोजित किया गया था. ध्वजारोहण के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन में विवेक की कविता- पाठ में भारत के शहीदों के बलिदान के प्रति सच्ची श्रद्धा और आस्था थी, गीता द्वारा मॉरीशस के प्रसिद्ध लेखक अभिमन्यु अनत की पंक्तियाँ सुनाईं गईं. पंक्तियों में स्वतंत्रता के लिए सहे गए कष्ट साकार थे. लोग उस असहनीय पीड़ा से स्तब्ध थे.









अचानक शैली की रूम-मेट कला को याद आया शैली सरस्वती पूजा की छुट्टी में किसी के साथ कहीं पिकनिक के लिए जाने की बात कर रही थी. इस सूचना के बाद पुलिस दवारा सभी आसपास के पिकनिक स्थानों की खोज शुरू की गई, पर शैली का कहीं पता नहीं था. मीता और गीता को समर पर शक था, पर वह तो शहर में मौजूद था. कहाँ गई, शैली, सब परेशान थे. दो दिनों की खोज के बाद शैली एक फ़ार्म हाउस में बंधक पाई गई थी.

पुलिस की कड़ी पूछ्ताछ के बाद शैली ने बड़ी मुश्किल से रोते हुए रहस्य खोला था. समर और उसके साथियों द्वारा शैली को पिकंनिक पर ले जाने के बहाने इस फार्म-हाउस में बंदी बना कर रखा गया और उसके साथ दुष्कर्म किया गया. मुंह खोलने पर उसे जान से मारे जाने की धमकी दी गई थी. शैली रो रही थी, काश उसने मीता और गीता की बातों पर विश्वास किया होता और समर की झूठी मित्रता पर भरोसा ना किया होता. गीता ने शैली को प्यार से समझाया-



पुलिस द्वारा समर और उसके मित्रो को गिरफ्तार कर लिया गया, पर जल्दी ही उन्हें ज़मानत पर छोड़ दिया गया. गीता और विवेक ने साथियों से इस घटना के विरोध में कार्रवाई करने का अनुरोध किया, पर अधिकांश. विद्यार्थी पुलिस या कुलपति के सामने विरोध की आवाज़ उठाने को तैयार नही थे. अंतत: एक लडकी के अपमान के विरोध में जब गीता ने पुलिस स्टेशन पर भूख हड़ताल करने का निर्णय लिया तो विवेक ने क्लास के साथियों से अपनी तेजस्वी वाणी में कहा-

“हमें लज्जा आनी चाहिए कि एक दूसरे देश से आई लड़की ने हमारी साथिन के साथ हुए अन्याय की पीड़ा को महसूस किया. वह अकेली अन्याय का विरोध करने भूख हड़ताल करने जा रही है. और हम सब आराम से सो रहे हैं. क्या यही हमारे देश की संस्कृति है? भारत में नारी को पूज्यनीय देवी कहा गया है और आज हम एक लडकी के अपमान पर मौन हैं? अगर आप सब साथ दें तो हम क्या नहीं कर सकते. अगर आपमें साहस नहीं है तो मै अकेला बहिन शैली के सम्मान के लिए भूख हड़ताल करूंगा.” विवेक के तेजस्वी मुख और आत्मविश्वास पूर्ण शब्दों ने विद्यार्थियों में चेतना जागृत कर दी.


घटना की खबर ने मीडिया और यूनीवर्सिटी के सभी छात्र-छात्राओं को भी उत्तेजित कर दिया, नहीं अब अन्याय नहीं सहा जाएगा. स्थिति की गंभीरता देख कर समर और उसके साथियों को यूनीवर्सिटी से   निष्कासित कर दिया गया. समर को मित्रो सहित जेल में डाल दिया गया. भय था कहीं उत्तेजित विद्यार्थी उसकी जान ना ले लें. समर को मित्रो सहित मुकदमे की तुरंत कार्रवाई की मांग की गई थी वकीलों से अनुरोध किया गया था,अपराधियों को बचाने की कोशिश ना करें वरन न्याय का साथ दें. वैसे भी शैली के बयान की अवज्ञा नहीं की जा सकती थी.


“तुम दोनों बधाई के पात्र हो, विशेषकर गीता, जिसने न्याय के पक्ष में अपने साहस से एक छोटी सी चिंगारी लगाई और विवेक, जिसने इस चिंगारी को हवा दे कर हमारे विद्यार्थियों के मन में अन्याय के विरुद्ध आग प्रज्ज्वलित कर दी. अब तुम दोनों अपनी पढाई पर ध्यान दो और न्याय और क़ानून पर विश्वास रखो. हम सब तुम्हारे साथ हैं. हमें तुम दोनों से बहुत आशाएं हैं.”












“संक्षेप में मेरे पिता जी हिंदी और संस्कृत के विद्वान थे. उन्हें हिंदी से बहुत प्यार था. विश्वविद्यालय में हिंदी के अध्यक्ष होने के कारण उनकी योजना थी एक ऎसी इंस्टीट्यूट बनाई जाए जहां हिंदी के श्रेष्ठ साहित्य का अंग्रेज़ी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया जाए और इसी तरह अंग्रेज़ी और अन्य भाषाओं के श्रेष्ठ साहित्य का हिंदी में अनुवाद किया जाए.”


“पिता जी ने कार्य शुरू किया था, विदेशों से उनके प्रिय विद्यार्थियों ने आर्थिक सहायता भेजी थी. सरकार से भी सहायता का आश्वासन दिया गया था, पर पिता जी के आकस्मिक निधन के कारण अभी योजना अपूर्ण है.इस योजना को पूर्ण कर के पिता जी का सपना पूरा करना मेरा लक्ष्य है. पिता जी के साथ मैने हिंदी का अध्ययन किया है, पर इसमें योग्यता पाने के लिए मै इस विषय में मास्टर्स करने का निर्णय लिया है.”गंभीरता से विवेक ने अपनी बात कही.








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