शेखर भैया के सुझाव पर आज सुमन लाइब्रेरी के लिए अकेली ही निकल पड़ी थी. अब वह एम् .ए प्रीवियस में एडमीशन ले चुकी है, इतनी हिम्मत तो उसमे होनी ही चाहिए. रास्ता तो भैया ने समझा ही दिया था. अचानक राह में बने एक बंगले की गार्डेन देख सुमन ठिठक गई. ऐसा लगता था गार्डेन में दुनिया भर के फूलों का मेला सजा हुआ था. हवा में झूमते फूल खुशी से इतराते से लग रहे थे. बचपन से ही सुमन को फूलों से बहुत प्यार था. अपने छोटे से घर के गमलों में कुछ फूलों के पौधे लगा कर ही वह खुश रहती. फूलों पर दृष्टि गडाए सुमन की नज़र घर से बाहर आरहे एक युवक पर पड़ी थी.
“यह घर तुम्हारा है?”अचानक ही सुमन उस कीमती वस्त्रों में आए युवक से पूछ बैठी.
“मेरे कपडे देख कर भी तुम्हें ये सवाल पूछने की ज़रुरत है?”अभिमान से उसने कहा.
“अक्सर कपड़ों से इंसान की पहिचान नहीं होती. हमने सीधा सवाल किया था, क्या तुम सीधा जवाब नहीं दे सकते?”सुमन ने निर्भय सवाल किया. परिस्थितियों ने सुमन को साहसी बना दिया था.
“हाँ ये मेरा बंगला है. पूरे शहर में ऐसा दूसरा बंगला नहीं है. आजकल मॉम और डैड तीन महीनों के लिए लन्दन गए हैं. अब इस घर का मै अकेला ही मास्टर हूँ. वैसे तुम यहाँ क्यों खडी हो?”
“तुम लकी हो तुम्हारी गार्डेन में इतने सुन्दर फूल खिले हैं. लगता है तुम्हे भी फूलों से बहुत प्यार है. इन फूलों को देख कर हम रुक गए.थे.” भोलेपन से सुमन ने सच बयान कर दिया.
“ओह नो, मेरे पास फूल जैसी चीजों को ऐप्रिसिएट करने के लिए टाइम नहीं है. इंजीनियरिंग के फाइनल इयर में हूँ. इंजीनियर बन कर हाई क्लास आकाश छूती बिल्डिंग्स बनाना मेरा मकसद है.”हिकारत से युवक ने कहा.
“क्या तुमने कभी अपनी गार्डेन के फूलों से प्यार ही नहीं किया? फूलों पर उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों को नहीं देखा, भंवरों के गुनगुन गीत नहीं सुने, कली की एक-एक पांखुरी को खिलते नहीं देखा? फिर क्यों इतनी सुन्दर फूलों की गार्डेन बनाई है?”सुमन के सुन्दर चहरे पर ढेर सारा विस्मय था.
“क्या तुम कविता लिखती हो? तुम्हारी बातें समझ में नहीं आतीं. ये गार्डेन हमारा स्टेटस-सिम्बल है. इसे देखने के लिए माली हैं. यहाँ से अगर कुछ फूल मुफ्त में ले कर अपने पैसे बचाना चाहती हो तो, ले सकती हो, पर रोज़- रोज़ फूल ले कर बाज़ार में बेचने की कोशिश मत करना.”अमन के चहरे पर व्यंग्य स्पष्ट था.
“इतने सुन्दर फूलों के बीच रहने वाले तुम इतनी छोटी बात सोच भी कैसे सकते हो?आक्रोश से सुमन का गोरा चेहरा लाल हो उठा.
“सॉरी, अक्सर लोग यहाँ के फूलों से बुके बना कर फ़ायदा उठाते हैं. वैसे तुम्हारा नाम क्या है?”
“सुमन, हमारा नाम जान कर क्या करोगे?’
“सु- मन- इसका मतलब जिसके पास अच्छा मन हो” अपने हिन्दी ज्ञान के आधार पर युवक ने कहा.
“वाह तुम तो बहुत अच्छी हिन्दी जानते हो, सुमन का अर्थ फूल होता है, समझे. इस तरह से तो तुम्हारा नाम अमन होना चाहिए, यानी जिसके पास मन ना हो.” सुमन के ओंठों पर मुस्कान आ गई.
“क्या, तुमने कैसे जाना मेरा नाम रियेलिटी में अमन ही है.” अब उसके विस्मित होने की बारी थी.
“जिसके पास फूलों के सौन्दर्य को सराहने वाला मन नहीं है, उसका तो यही नाम होना चाहिए.”सुमन के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी.
“मैने अपनी पूरी पढाई इंगळिश मीडियम से की है, फिर भी जानता हूँ, अमन का अर्थ शान्ति और चैन होता है और मेरे पास भी मन है.”अमन ने शान से जानकारी दी.
“तुम्हारे साथ बातें करते बहुत टाइम वेस्ट हो गया. अब चलती हूँ.”
“तुम क्या कहीं कोई काम करती हो? अगर चाहो तो किसी हॉरटीकल्चर डिपार्टमेंट में तुम्हे जॉब दिला सकता हूँ हमारे बहुत रिसोर्सेस हैं.” अमन के चहरे पर स्टेटस का अभिमान स्पष्ट था.
“थैंक्स अमन, अपनी योग्यता पर मुझे इतना यकीन है कि जो चाहूंगी पा लूंगी. किसी की सिफारिश की उन्हें ज़रुरत होती है जिन्हें अपने ऊपर विश्वास नहीं होता.”गर्व से सुमन ने कहा.
“अभी कहाँ जा रही हो, तुम्हें कार से ड्रॉप कर दूंगा. आखिर मेरी वजह से तुम्हारा टाइम जो वेस्ट हुआ.”
“भगवान् ने ये जो दो पाँव दिए हैं, इनका इस्तेमाल ना करूं तो इनमे जंग लग जाएगी ऑफर के लिए .धन्यवाद” सुमन के चहरे पर आत्म विश्वास था.
“तुम मिडिल क्लास वालों की यही कमजोरी होती है, अवसर का फ़ायदा उठाने में अपनी तौहीनी मानते हैं, इसीलिए आगे नहीं बढ़ पाते.”अमन ने अपनी राय दी.
“इन मिडिल क्लास वालों ने ही प्रेमचंद जैसे साहित्यकार ही नहीं देश के प्रधान मंत्री को भी दिया है. धूल-मिट्टी में खेलने वालों में से भी हीरे और मोती निकलते हैं.”गर्व से सुमन का सुन्दर चेहरा चमक उठा.
अपनी बात समाप्त करती सुमन तेज़ी से मुड कर वापस घर के लिए चल दी. अमन के साथ बातें कर के उसका मूड ही खराब हो गया था. लाइब्रेरी जाने का उत्साह ही नही रहा. सुमन सोचती रही ये अमीर अपने को क्या समझते हैं. अमन की बातों में कितना अभिमान था. क्या पैसे ही किसी इन्सान् की पहिचान होती है. अपनी इंजीनियरिंग की बात कितनी शान से बता रहा था. ज़रूर डोनेशन दे कर इसका एडमीशन किसी ऐसे वैसे कॉलेज में कराया गया होगा वरना वो अभिमानी आई आई टी का नाम ज़रूर लेता. एक शेखर भैया हैं अपनी मेधा के बल पर देश के सबसे अच्छे कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे हैं, पर कभी इस बात के लिए लिए घमंड नहीं किया.
पिता की मृत्यु के बाद जब रिश्तेदारों ने किनारा कर लिया तब अपनी माँ के साथ दस वर्ष की सुमन इस मोहल्ले में आई थी. इस मोहल्ले में आए हुए सुमन को नौ वर्ष बीत चुके थे. पास पड़ोस के परिवारों से उसे और उसकी माँ को बहुत अपनापन मिला था. माँ ने एक स्कूल में नौकरी कर ली थी पड़ोसियों की उन दोनों के प्रति बहुत सहानुभूति रहती. सच तो यह है, ये पड़ोसी उसके रिश्तेदारों से कहीं ज्यादा अपने सिद्ध हुए जो उनकी हर मुश्किल में साथ खड़े रहे. राखी के दिन उदास खडी सुमन पास के घरों में उत्साह् से मनाते त्यौहार को देख रही थी तभी साथ वाले घर से शेखर ने उसे देखा था.
“सुमन, अपने भाई को राखी नहीं बांधेगी?तुझसे राखी बंधवाने के लिए राखी भी साथ में लाया हूँ” अपनी जेब से राखी निकाल, शेखर ने अपनी कलाई आगे कर दी थी.
“सच, क्या हम तुम्हारे राखी बाँध सकते हैं?“खुशी से सुमन का सुन्दर चेहरा और भी कमनीय हो उठा.
“अरे पगली, मेरी भी तो कोई बहिन नही है. तू मेरे राखी बाँध देगी तो हम दोनों भाई-बहिन बन जाएंगे, पर तुझे मिठाई खिलानी पड़ेगी.”हंसते हुए शेखर ने कहा.
“आज माँ ने हलवा बनाया है, चलो माँ के सामने राखी बांधेंगे.”
उस दिन के बाद से शेखर ने सुमन को अपनी सगी बहिन जैसा ही स्नेह दिया था. शेखर के पिता एक ऑफिस में बड़े बाबू थे, पर बेटे के लिए उन्होंने ऊंचे सपने देखे थे. मेधावी शेखर ने उनके सपनों को पंख लगा दिए. जब शेखर कानपुर के आई आई टी के इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमीशन मिला तो सुमन ने खुशी में सबको मिठाई खिलाई थी. दोनों परिवार भी अब बहुत निकट आ गए थे. बी ए के एक्जाम में सुमन को सभी विषयों में डिस्टींक्शन मिला था, शेखर की खुशी का ठिकाना न था.
“आखिर सुमन किसकी बहिन है? सुम्मी तू भी इंजीनियरिंग करती तो दोनों भाई-बहिन एक ही कॉलेज में पढते.”शेखर प्यार से सुमन को सुम्मी ही पुकारता था.
“नहीं भैया, हमें साहित्य में रूचि है. हम हिन्दी में पीएच डी करेंगे.”सुमन ने अपना निर्णय सुना दिया.
“”उसके लिए आज से ही खूब सारी हिन्दी की अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ना ज़रूरी है. पास में लाइब्रेरी है वहां जाकर किताबें पढ़, छुट्टियों में घर पर बोर ही तो होती है. छुट्टियों में आए शेखर ने सलाह दी थी.’
“क्या हुआ, सुम्मी क्या लाइब्रेरी तक नहीं पहुँच सकी. रास्ता तो सीधा था” घर वापिस आई सुमन से शेखर ने पूछा.
“नहीं भैया, सीधे रास्ते में कंटीले झाड़ मिल गए. जाने का मूड नहीं बना.”
“क्या, रास्ता तो बिलकुल साफ़ है, वहां झाड़ कैसे हो सकते हैं. तेरी बात समझ में नही आई.”
“पूरी बात फिर बताऊंगी, अभी धूप की वजह से सिर दुःख रहा है.”अमन के साथ हुई बात बताने के लिए उसे वक्त चाहिए था.
दूसरे दिन सुमन की पुरानी टीचर मीरा दीदी का फोन आया था अनाथ बच्चों और असहाय स्त्रियों की सहायता के लिए गांधी पार्क में एक मेले का आयोजन किया जा रहा था. सुमन ऐसे कामों में सबसे आगे रहती थी इसी लिए उसकी टीचर चाहती थीं कि सुमन भी मेले में एक स्टॉळ लगा कर मदद करे. सुमन सोच में पड़ गई, मेले में खाने और मनोरंजन के तो बहुत से स्टॉळ होंगे क्यों न सुमन हिन्दी के महान लेखकों की पुस्तकें और पत्रिकाओं का स्टॉळ लगाए. पड़ोस में रहने वाले किशोर अंकल की किताबों की दूकान से अच्छी पुस्तकें और पत्रिकाएँ इस काम के लिए नि:शुल्क मिल जाएंगी, किताबें बिकने पर अंकल को भी कुछ फ़ायदा होगा. स्टॉळ पर “भारतीय साहित्य भण्डार” का बैनर लगाने से अंकल की दूकान का भी प्रचार होगा. इस काम में उसकी सहायता के लिए उसकी सहेली नीरा खुशी से तैयार हो गई. सुमन ने जैसा सोचा था, वही हुआ. किशोर अंकल ने खुशी-खुशी अच्छी-अच्छी पुस्तकें और पत्रिकाएँ सहर्ष दे दीं. सुमन उत्साहित हो गई. इस उत्साह में अमन के साथ हुई बातों की कडवाहट भी भूल गई.
उस शहर के लिए ऐसा मेला सबके आकर्षण का केंद्र हुआ करता था. कुछ देर की मौज-मस्ती के साथ अनाथ बच्चों और दुखी स्त्रियों के लिए सहायता भी हो जाती थी. सुमन और नीरा अपने स्टॉळ को सजाने में जुट गईं. बड़े-बड़े पोस्टरों पर आकर्षक रंगों से हिन्दी साहित्यकारों के चित्र और स्लोगन लगाने से उनका स्टॉळ बहुत प्रभावी बन गया था. एक शंका ज़रूर थी, क्या ऐसे मेले में लोग पुस्तकें या पत्रिकाएँ खरीदेंगे? किशोर अंकल ने मूल्य में पच्चीस प्रतिशत की छूट भी देने को कह दिया था.
आखिर मेले का दिन आ पहुंचा. चारों ओर हर्ष और उल्लास का माहौल था. लाउडस्पीकर पर घोषणाएं की जा रही थी. स्टॉळ वाले ग्राहकों को लुभाने के लिए नए-नए तरीके आजमा रहे थे. बच्चों के लिए मनोरंजन वाले स्टॉळ बुला रहे थे. तरह -तरह के खाने के स्टॉलों पर भी खूब भीड़ थी
“हम भी चाट का स्टॉळ लगा लेते तो अच्छा था. यहाँ हमारी किताबों का मोल जानने वाला कोई नहीं दिखता.”नीरा ने अपनी शंका व्यक्त की.
“कोई बात नहीं, कम से कम हम लोगों का ध्यान तो आकृष्ट कर सकते हैं कि हमारा हिंदी -साहित्य कितना समृद्ध है.”सुमन ने शान्ति से कहा.
तभी दो प्रौढ़ महिलाएं उनके पास आ गईं. उनमे से एक ने कहा-
“अरे मीना बहिन देखो, इस स्टॉळ पर कितने महान साहित्यकारों की पुस्तकें हैं. यह स्टॉळ तो सबसे अलग और अनूठा है.”
“हाँ रेवा, ये तो पहली बार देखा इस मेले में इसके पहले कभी किसी ने ऐसा नहीं सोचा. क्यों बेटी ये किसकी सूझ है?” रेवा जी ने मुस्करा कर पूछा.
“ऎसी सोच तो बस हमारी इस सहेली सुमन की ही हो सकती है.”नीरा ने सुमन की ओर इशारा किया.
“आंटी आप क्या कुछ पुस्तकें खरीदेंगी? खरीद पर पच्चीस प्रतिशत की छूट है.”सुमन ने उत्साह से कहा.
“ज़रूर, हमे कुछ अच्छी पुस्तकें अपनी लाइब्रेरी के लिए लेनी हैं.” मीना जी ने कहा.
कुछ ही देर में दोनों महिलाओं ने दस पुस्तकें खरीद लीं. सुमन ने खुशी-खुशी पैकेट देकर धन्यवाद दिया.
“चलो हमारी पहली बोहनी तो हो गई, अब आगे देखें क्या होता है.”नीरा भी खुश थी.
दूर से आ रहे अमन और उसके साथी समीर की नज़र सुमन के स्टॉळ पर खडी लड़कियों पर पड़ी. अमन ने हलके से सीटी बजा कर कहा
“अरे ये तो उस दिन वाली लड़की सुमन है. साथ में कोई दूसरी लड़की भी है.”
“देख अमन, सुमन के साथ दूसरी लड़की मेरी कजिन नीरा है. उनके साथ कोई शैतानी नही चलेगी वरना घर में शिकायत हो जाएगी.”समीर ने चेतावनी दी.
“तू उस लड़की सुमन को जानता है?”अमन विस्मित था.
“उसे सिर्फ मै ही नहीं, बहुत लोग जानते हैं. ब्यूटी और ब्रेन दोनों का संगम है. पूरी यूनीवर्सिटी में सेकण्ड पोजीशन पाई थी. शहर की डिबेट में सबकी बोलती बंद कर डाली थी.”समीर ने तारीफ़ की.
“शायद इसी घमंड में मुझे पूरा लेक्चर दे डाला था. चल देखें क्या नायाब चीजें बेच रही है.”
दो लडकियां हिन्दी की पत्रिकाएँ देख रही थीं. नीरा उन्हें मैगजीन दिखा रही थी तभी अमन और समीर भी आ पहुंचे.
“हेलो, सुमन, मुझे पहिचानाती तो ज़रूर होगी.”पूरे यकीन के साथ अमन ने कहा.
“किसी अजनबी को याद रख पाना संभव नहीं होता. कहिए, आपको कैसी किताबों में इंटरेस्ट है?”गंभीरता से सुमन ने कहा.
“इंगलिश की क्लासिक स्टोरीज़ मिलेंगी? सॉरी, भूल गया, तुम तो हिन्दी पढने वाली हो, तुम्हे अंग्रेज़ी बुक्स के बारे में क्या पता होगा.”व्यंग्य से अमन ने कहा.
“फ़ॉर योर इन्फारमेशन बी. ए में मेरा एक विषय इंगलिश लिटरेचर रहा है और मुझे अंग्रेज़ी में डिस्टींक्शन मार्क्स मिले हैं. अगर आप नहीं जानते तो बता सकती हूँ, शहर में इंगलिश क्लासिक्स कहाँ मिलती हैं.”सुमन के चहरे पर हलकी मुस्कान थी.
“अरे समीर भैया, आप लोग हमारे स्टॉळ पर आए हैं, अब तो आप दोनों को किताबें खरीदनी ही होंगी.”समीर को देख नीरा ने खुशी से कहा.
“मेरे घर में इन किताबों के लिए जगह नहीं है, वैसे आप दोनों ने इतनी मेहनत की है, शायद लोगों से मांग कर किताबें सजाई है, इस लिए अगर डोनेशन चाहिए तो दे सकते हैं. कहिए कितने का चेक दे दूं.”सुमन को तिरछी नज़र से देखते अमन ने पूछा.
“ओह, थैंक्स. हमें आपकी दया नहीं चाहिए. अगर डोनेशन देना ही है तो शुरू में ही डोनेशन बॉक्स रक्खा गया है वहां अपने डैड के कमाए पैसे डाल दीजिए. वैसे भी आपको तो बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स बनानी हैं, उस वक्त आपके पैसे काम आएँगे.”उत्तेजना से सुमन का चेहरा लाल हो आया था.
“शांत हो जा सुमन, ये तो हमारी मदद ही करना चाह रहे हैं.” नीरा ने बात सम्हालनी चाही.
“मदद नहीं ,हमारी इन्सल्ट कर रहे हैं,सुना नहीं हमने मांग-मांग कर किताबें सजाई हैं. वैसे भी हमारे जैसे मिडिल क्लास वालों के बारे में ये बड़े ऊंचे विचार रखते हैं.”सुमन को अमन की बातें याद थीं.
‘सॉरी सुमन, अमन तो मज़ाक कर रहा था, वैसे मुझे कुछ अच्छी किताबें और पत्रिकाएँ चाहिए. घर में बहिने और भाभी ऎसी किताबों को बड़े शौक से पढती हैं. तुम अपनी पसंद की सात-आठ किताबें दे दो.”
“ज़रूर समीर भैया, अभी चुन कर देती हूँ.”सुमन ने जल्दी ही सात किताबें चुन लीं.
‘अमन यार, अब तू पेमेंट कर दे. डोनेशन देने वाला था, अब पैसे निकाल.”समीर ने मज़ाक किया.
“नो.प्रॉब्लेम, कितने का चेक काटना है. अगर कहें तो असल दाम से कुछ ज़्यादा का चेक दे सकता हूँ.”’
“थैंक्स, अपने पैसे खर्च करने के लिए आपके पास बहुत साधन हैं, हमें बस दो हज़ार का चेक चाहिए.”
‘ऐज़ यूं विश, वैसे अगर फ़ायदा नही उठाना था तो ये दूकान लगाने की क्यों सोची.”
“ये बात तुम नहीं समझोगे, अमन.”शान्ति से सुमन ने कहा.
“नीरा और सुमन तुम दोनों सवेरे से बिज़ी हो, जाओ अमन के साथ जा कर कुछ खा-पी लो. कुछ देर के लिए यहाँ मै सम्हाल लूंगा. अमन होप यूं डोंट माइंड.”समीर ने प्यार से कहा.
“नहीं, हमें नहीं जाना है, नीरा तू चली जा.”सुमन ने साफ़ मना कर दिया.
“अगर तू नहीं चलेगी तो हमें भी नहीं जाना है.”नीरा ने साफ़ इनकार कर दिया.
विवश सुमन को भी अमन का साथ झेलना पडा. तीनो चाट के स्टॉळ पर पहुंचे. वहां काफी भीड़ थी, पर अमन पर निगाह पड़ते ही एक लड़की ने चहक कर कहा-
“अरे अमन जी, आप , कहिए क्या लेंगे?”लड़की के चहरे पर खुशी की चमक थी.
“मुझे बस एक कोल्ड ड्रिंक दे दो, इन दोनों को जो चाहिए दे दो. हाँ पेमेंट मै करूंगा.”
“शुक्रिया, अमन हमें तुम्हारी दरियादिली की ज़रूरत नहीं है, हम अपना पेमेंट खुद कर सकते हैं.”
“एक पुरुष के साथ आई लडकियां अपना बिल खुद चुकाएं, क्या यही भारतीय संस्कृति है, सुमन?’
“याद नहीं., पहले दिन ही तुमने कहा था मिडिल क्लास वाले मौके का फ़ायदा उठाना नहीं जानते, बस वही समझ लो. हम तुम्हारे साथ आए हैं, उसके लिए धन्यवाद, इससे ज़्यादा और फ़ायदा नहीं उठाना है” बात खत्म करती सुमन ने पैसे काउंटर पर खड़ी लड़की को दे दिए.
अमन का चेहरा आक्रोश से लाल हो उठा. बिना बात किए वे लौट आए. उन्हें देख समीर ने पूछा-
“कहो मेरे दोस्त की कितनी जेब खाली कर डाली?”चहरे पर हँसी थी.
“चल समीर, आई एम् फेड- अप. ये अपने को न जाने क्या समझती है, मूड ही खराब कर दिया. चल क्लब चलते हैं, मूड ठीक करना है.”कड़ी नज़र सुमन पर ङाळ अमन चुप हो गया.
”किसकी बात कर रहा है, किसने मूड खराब कर दिया?”समीर विस्मित था.
“कुछ नहीं, अब यहाँ रुकना बेकार है.”अमन के साथ जाने को समीर विवश था.
“तू बेकार में ही अमन से उलझ पड़ी. उसने कुछ गलत तो नहीं कहा था.”नीरा ने कहा.
“तू उस घमंडी को नहीं जानती. अमीर बाप का बेटा है, दूसरों पर अपनी अमीरी का रोब झाड़ता है. उसकी बात छोड़, हमें तो यही खुशी है, हमने काफी पैसे जुटा लिए हैं.”
“हाँ मीरा दीदी तो हमारे काम से खुश हो जाएंगी.” नीरा ने सहमति जताई.
दो दिनों बाद नीरा सुमन के पास आई. उसके चहरे पर खुशी साफ़ झलक रही थी.
“सुम्मी, चल आज हम क्रिकेट मैच देखने चलेंगे. समीर भैया ने पास दिए हैं.”
“तुझे कब से क्रिकेट देखने का शौक हो गया? हमें नही जाना है.”
“जानती है इस मैच में समीर भैया भी खेलेंगे. इतने मंहगे टिकट हमें मुफ्त में मिले हैं. प्लीज़ मेरे लिए चली चल.”नीरा ने अनुरोध किया.
नीरा के साथ सुमन को मैच देखने के लिए जाना ही पडा. ग्राउंड में भारी भीड़ थी. नीरा के पास वी आई पी पास होने की वजह से अच्छी सीटें मिल गईं.
“इस मैच को अमन ने स्पौंसर किया है, इसीलिए हमें वी आई पी पास मिले हैं.”नीरा ने खुशी से बताया.
“अगर तूने पहले ही ये बात बता दी होती तो हम किसी हालत में मैच देखने नहीं आते. कभी उसने कबड्डी खेली है, नहीं ना? क्योंकि वहां तो उसका स्टेटस आड़े आ जाएगा.”स्वर में कडवाहट स्पष्ट थी.
“तू बेकार ही अमन से चिढती है, अच्छा-भला लड़का है. अमीर है इस बात को झुठलाया तो नहीं जा सकता. अब खेल शुरू हो रहा है, खेल का मज़ा ले.”
हर्ष प्वनि के साथ मैच शुरू हो गया. अमन बैटिंग कर रहा था. पहली ही बॉळ पर छक्का मार कर अमन ने ढेर सारी तालियाँ पा लीं. हर बॉळ पर रन बनाता अमन हीरो बन गया. पूरे दिन खेल चलता रहा.
अंतत: अमन की टीम विजयी रही. जीत का कप लेते अमन के साथियों ने उसे कंधे पर उठा लिया. अमन का हेहरा खुशी से खिला दिख रहा था. सुमन जल्दी वापिस लौटना चाहती थी, पर नीरा समीर को बधाई देना चाहती थी. थोड़ी देर बाद भीड़ छंटने पर समीर के साथ अमन भी बाहर आ रहा था. नीरा ने आगे बढ़ कर उन्हे बधाई दी. थैंक्स देते अमन की निगाह नीरा के साथ खडी सुमन पर पड़ी थी.
“ये तो कमाल हो गया, यूनीवर्सिटी की ब्रिलिएंट स्टूडेन्ट सुमन भी हमारा मैच देखने आई थीं, अच्छा हुआ मै ने इन्हें नहीं देखा वरना दहशत के मारे ज़ीरो पर आउट हो जाता.”व्यंग्य से अमन ने कहा.
“अपनी जीत पर नाज़ करना बेकार है, अमन. स्पॉंसरशिप के बदले जीत तो मिलनी ही थी” सुमन ने साफ़-साफ़ जीत का पूरा श्रेय अमन की स्पॉंसरशिप को दे डाला.
“मान जा, अमन इनकी दुआओं ने ही हमें जिता दिया.”समीर ने परिहास किया.
“यार समीर, तू इन्हें नहीं जानता, डरता हूँ कहीं अपना लेक्चर शुरू ना कर दें, अपनी गार्डेन देखने के लिए वक्त नहीं है और खेल में टाइम वेस्ट कर रहे हो. खैर आज की जीत की खुशी में माफ़ करता हूँ.”
सुमन का गोरा चेहरा तमतमा आया. ये होता कौन है जो उसे माफ़ करे. घमंडी कहीं का. अच्छा होता वह नीरा की बात न मान कर यहाँ ना आती.तभी पांच-सात लडकियां अमन के ऑटोग्राफ लेने आ गईं. उनके चेहरों पर अमन के लिए प्रशंसा थी. उनके साथ नीरा ने भी ऑटोग्राफ लिया था. अमन ने सबको ऑटोग्राफ देकर सुमन से कहा-
“तुम मेरा ऑटोग्राफ नहीं लोगी, सुमन. एक मशहूर बिल्डर की तरह से जब अखबारों में मेरा नाम निकला करेगा तब तुम मेरे ऑटोग्राफ की इम्पौरटेंन्स समझोगी.”शान से अमन ने कहा.
“एक बिल्डर की मेरी दृष्टि में कोई विशेष इज्ज़त क्यों होगी? अपने सपनों को सपने ही रहने दो, अमन. अमीरों से भारी रकम ले कर ऊंची-ऊंची इमारतें बनाने वाले हज़ारों बिल्डर्स होते हैं. काश कोई ग़रीबों के लिए घर बनवाता उसके लिए मेरे दिल में सच्ची इज्ज़त होती, नीरा अभी मुझे घर जाना है, तू रुक सकती है..”अपनी बात कहती सुमन तेज़ी से चल दी. उसके पीछे नीरा भी थी.
“ये लड़की अपने को न जाने क्या समझती है, इसे क्या पता एक दिन अपनी बनाई ऊंची-ऊंची इमारतों के साथ मै आकाश की ऊंचाइयां छू लूंगा.”अमन के चहरे पर अभिमान था.
घर पहुंची सुमन का आक्रोश थम नही रहा था. माँ हमेशा कहती हैं घमंडी का सिर नीचा होता है. एक दिन इस अमन का भी अभिमान ज़रूर टूटेगा. सिर्फ पैसे से ही तो कोई इंसान बड़ा नहीं बन जाता. आज शेखर भैया होते तो उनसे बात कर के कुछ शान्ति मिलती, पर वह तो छुट्टियों में किसी कम्पनी में इंटर्नशिप करने के लिए बाहर गए हुए हैं. नीरा तो अमन को बस इतना ही जानती है कि वह उसके समीर भैया का अच्छा दोस्त है. पता नही अमन को सुमन से क्या दुश्मनी है, उसे हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश करता है.
दो दिन बाद शाम को अपने लगाए फूलों के पौधों को पानी देती सुमन गुनगुना रही थी. गुलाब की टहनी पर मुस्कुराते सुर्ख लाल गुलाब को देख कर उसका अवसाद तिरोहित हो गया. तभी घबराई हुई नीरा आ पहुंची. उसके चहरे पर किसी अनिष्ट की आशंका स्पष्ट थी.
“क्या हुआ, नीरा, तू अचानक यहाँ?”उसे देख सुमन विस्मित थी.
“एक बुरी खबर है, कल शाम अमन ने एक लड़की को कुछ गुंडों से बचाया था. अमन रोज़ सवेरे जॉगिंग के लिए जाता है. वे गुंडे अमन से बदला लेने की ताक में थे. अमन को अकेला पा कर उन गुंडों ने अमन को बुरी तरह से पीटा और उसे बेहोश छोड़ कर भाग गए. सवेरे जब लोगों ने देखा तो उसे हॉस्पिटळ पहुंचाया गया. समीर भैया अमन के पास हैं. उसके मम्मी पापा तो लन्दन में हैं.”
“अगर अपनी गर्ल फ्रेंड को बचाने की वजह से उसे पिटना पडा तो उसके लिए तू क्यों हमदर्दी दिखा रही है? उस घमंडी को ऎसी ही सज़ा मिलनी चाहिए.”नीरा की खबर से अप्रभावित सुमन ने कहा.
“तू अमन के बारे में हमेशा उळ्टा ही क्यों सोचती है, सुम्मी. उसकी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है, उसे तो लड़कियों से चिढ है. शायद इसीलिए तेरे साथ उसकी नहीं बनती.”नीरा नाराज़ थी.
“अच्छा अब बता तू हमसे क्या चाहती है, यहाँ दौड़ी-दौड़ी क्यों आई है?”
“तुझे मेरे साथ अमन को देखने हॉस्पिटल चलना होगा.”
“सॉरी, हम उसे देखने नहीं जा सकते.”सुमन ने साफ़ कह दिया.
“तेरे हर काम में हम तेरा साथ देते हैं, आज तुझे चलना ही होगा. मेले में किताबों के पैसे और क्रिकेट मैच के पास अमन ने ही दिए थे, हमें तो उसका अहसान मानना चाहिए. अगर आज तूने साथ नहीं दिया तो आगे से हमसे कोई उम्मीद मत रखना.”नीरा ने चेतावनी दे डाली.
अन्तत: सुमन को नीरा के साथ जाना ही पडा. हॉस्पिटळ की बेड पर पैरों और हाथों पर प्लास्टर के साथ ळेटा अमन बेहद उदास नन्हे शिशु सा मासूम दिख रहा था. नीरा और सुमन को देख उसके चहरे पर शायद विस्मय था. समीर उसके पास से उठ कर खडा हो गया.
“कैसे हो, अमन? बहुत दर्द हो रहा होगा.”नीरा ने सहानुभूति से पूछा.
“पैरों के मल्टिपल फ़ैक्चर उतनी तकलीफ नही दे रहे हैं, जितना अपनी आगे आने वाली ज़िंदगी के बारे में सोच कर तकलीफ हो रही है.”अमन के चहरे पर दर्द था.
“ऐसा क्यों सोचते हो, तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगे.”नीरा ने तसल्ली देनी चाही.
“सुमन तुम यहाँ?” सुमन को देखते अमन ने कहा,चेहरे पर ढेर सारा विस्मय था.
सुमन के उत्तर के पहले ही एक पुलिस इन्स्पेक्टर आ गया. अमन की बेड के पास आ कर कहा-
“हेलो अमन, अब कैसा फील कर रहे हो?”
“मेरी छोड़िए, क्या उन गुंडों का पता लगा?” अमन की आवाज़ में बेचैनी स्पष्ट थी.
“तलाश जारी है, अब आप पूरी घटना मुझे बताइए.”
“कितनी बार वही बात दोहरानी होगी? बताया तो था, मै शाम को ईवनिंग- वाक के लिए निकला था, रास्ता सूनसान था. तभी एक लड़की भागती हुई आई और मदद के लिए चिल्लाई. उसके पीछे दो गुंडे थे. मैने उन्हें रोकने की कोशिश की, पर उन्होंने मुझे छूरे से मारने की धमकी दी. लकीली मेरे पास मेरा रिवॉल्वर था, जैसे ही अपनी रिवॉल्वर पॉकेट से निकाली दोनों डर के भाग खड़े हुए.”
“बाई दि वे आपके पास रिवॉल्वर का लाइसेंस तो होगा, वैसे आप उसे ले कर क्यों घूमने निकले थे?”
“पुलिस को लाइसेंस दिखाया भी जा चुका है. आपसे बताया था कि रास्ता सूनसान रहता है. वहां कुछ वारदातें हो चुकी हैं. अपनी हिफाज़त के लिए उसे साथ रखना अपराध तो नही है, इन्स्पेक्टर.”
“ठीक है, मै समझता हूँ. आप उन गुंडों का कुछ हुलिया बता सकते हैं?”
“असल में शाम का अन्धेरा सा था, हाँ वे दोनों जींस और शर्ट पहिने हुए थे. ए
“लंबी कहानी है, सुमन. मेरे पैसों के लालच में वो लड़की मेरे साथ प्यार का नाटक खेलती रही. अपने अकेलेपन से ऊबा हुआ मै उसके जाल में फंसता गया. एक दिन मुझसे ज़्यादा अमीर लड़के के साथ कहीं चली गई. मुझे लड़की नाम से नफरत हो गई, शायद इसी लिए तुम्हारे साथ बहुत कटु था.”“पुरानी दुखद बातें भुला देने में ही समझदारी होती है. मेरे ख्याल से इस वक्त तुम्हारे पास काफी फ्री टाइम है, तुम अपनी जिन बिल्डिंग्स को बनाने के सपने देख रहे थे उनके बारे में कुछ स्टडी क्यों नहीं कर लेते.”सुमन ने गंभीरता से कहा.“अब समझा, तुम मेरा मज़ाक बना रही हो..”अमन ने नाराज़गी से कहा.“तुम हमें समझ ही नही सके, अमन, हम सच्चे दिल से चाहते हैं तुमने जो सपने देखे हैं वो ज़रूर पूरे हों. तुम बुक्स पढ़ कर काफी आइडियाज़ ले सकते हो. हम तुम्हारे लिए लाइब्रेरी से किताबें ला सकते हैं.”“थैंक्स, सुमन, सच कहती हो, मुझे इस वक्त को बेकार नहीं करना चाहिए. मेरे घर में बिल्डिंग डिज़ाइमिंग पर बहुत सी अमेरिका की किताबें हैं, पर तुम कैसे ला पाओगी?”“तुम एक कागज़ पर लिख कर दे दो, हम माली काका के साथ जाकर बुक्स ले आएँगे,’“हाँ माली तुम्हे पहचानता है, पर तुमने उसे अपना काका कब बना लिया?”‘पहले दिन ही जब तुमने हमें फूलों को बाज़ार में बेच कर फ़ायदा उठाने का का अभियोगी बना दिया था.” सुमन ने शरारत से कहा.“सॉरी, सुमन, मेरी गलती माफ़ करो. तुम्हे कितना गलत समझा था. तुम्हारे अच्छे मन से माफी तो ज़रूर मिलेगी.”मुस्कुराते हुए अमन ने एक स्लिप पर संदेश लिख कर सुमन को दे दिया.“बाबा रे, इतनी भारी किताबें तुम कैसे पढ़ पाते हो, अमन, हम तो इन्हें उठाने से ही थक गए.” दूसरे दिन अपने साथ लाई किताबें पास की मेज़ पर रखती सुमन बोली.“थैंक्स, सुमन. तुमने मुझे नई शक्ति दी है.”अमन ने प्यार से कहा.दूसरे दिन से सुमन भी अपने साथ कुछ किताबें ला कर पढती रहती. बीच-बीच में दोनों बातें करते, पुराने मजेदार किस्से एक-दूसरे को सुना कर हंसते. सुमन अपने साथ जो भी खाने को लाती उसमे अमन का हिस्सा ज़रुर होता. अमन कहता सुमन की माँ के हाथ का बना खाना इतना टेस्टी क्यों होता है? इसमें माँ का प्यार जो है ,सुमन कहती. सुमन की माँ भी आ कर उसे आशीर्वाद दे गई थीं, अब अमन अपने विश्वास को फिर जीने लगा था. सुमन जैसे अमन की ज़रुरत बन गई थी.“एक बात सच-सच बताना, मेरे अभिमान की वजह से तुम मुझसे नफरत तो ज़रूर करती रही होगी.” एक दिन अचानक अमन सुमन से पूछ बैठा.“सच कहूं तो तुम पर बहुत गुस्सा आता था, ये लड़का अपने को क्या समझता है, पर अब सोचती हूँ तुम्हारे अभिमान के साथ मेरे स्वाभिमान और संस्कारों की टकराहट थी, दोनों के बीच तनाव था इस लिए हिसाब बराबर हो गया.” सुमन के हंसते सुन्दर चहरे को अमन मुग्ध ताकता रह गया.दूसरे दिन जल्दी आने को कह सुमन लौट गई थी. “ऐ लड़की, रुक. तू सुमन है?”कड़ी आवाज़ में पूछे गए प्रश्न पर अमन के पास जा रही सुमन चौंक गई.जी ई—आप कौन हैं, हमें कैसे जानती हैं?’उस फैशनेबल स्त्री को विस्मय से देखती सुमन ने पूछा.“मै कौन हूँ, तो सुन और समझ ले, मै अमन की मॉम हूँ. तेरे बारे में सब सुन चुकी हूँ. तुझ जैसी लड़कियों को अच्छी तरह से जानती हूँ. अमीर लड़कों को फंसा कर पैसे लूटना और फिर धोखा दे कर किसी और को शिकार बनाना. यही तेरी पहिचान है. एक बार मेरा बेटा धोखा खा चुका है, अब दूसरी बार उसे धोखा नहीं खाने दूंगी.”क्रोध से अमन की मॉम का का चेहरा तमतमा रहा था.“आप हमारा अपमान कर रही हैं. हम ऎसी लड़की नहीं हैं ना ही हमारा ऐसा कोई इंटेंशन है. आप जैसे अमीरों से हम कहीं ज़्यादा अमीर हैं, आपके पैसे आपको मुबारक उन्हें तो हम छूना भी पसंद नही करेंगे.”अपमान से सुमन का चेहरा लाल हो गया.“बकवास बंद करो, बहुत हो गया. जिस लालच से तुमने मेरे बेटे की देखरेख की है, उसके लिए कितने पैसे चाहिए. अभी चेक लिख देती हूँ, इसके बाद इधर कभी मत झांकना.”“हर बात पैसे से नहीं तौली जाती मैडम, पर ये बात आप कभी नहीं समझ सकेंगी, धन्यवाद.”बात समाप्त करती सुमन तेज़ी से मुड़ कर चल दी.क्रोध और अपमान से सुमन का अंतर जल रहा था. गलती उसी की थी आखिर उसे क्या पड़ी थी जो अमन के पास जा कर अपना समय नष्ट किया. अमन भी तो उसी माँ का बेटा है जिस स्त्री ने उस पर कितने अपमानजनक लांछन लगाए. शायद आज की दुनिया में अच्छाई करना ही गलत है. बस बहुत हो गया सुमन, अब उस अमन से उसे कोई नाता नही रखना है. न जाने क्यों सुमन का मन खूब रोने का कर रहा था. माँ से ये बात बतानी ठीक नही है, वह दुखी हो जाएगी. शेखर भैया या नीरा के आने पर उनसे बात कर के शायद उसका दिल हल्का को सकेगा. इतने अपमान के बावजूद भी वह अमन की चिंता से मुक्त नही हो पा रही थी. सुमन के साथ बातें करता अमन अपनी तकलीफ भूल जाता था. सुमन भी मजेदार किस्से सुना कर उसे अपने दर्द का एहसास नहीं होने देती थी. दोनों का साथ पूर्णता देता था. ना चाहते हुए भी सुमन की सोच का केंद्र- बिंदु अमन था. उसका अकेलापन उसे छू गया था.हॉस्पिटळ में अमन बेचैनी से सुमन का इंतज़ार कर रहा था. आज सुमन को मॉम से मिलाना है और आज ही वह लेट हो रही है. सुमन से मिल कर मॉम कितनी खुश होंगी. मॉम के न होने की सुमन ने कमी ही महसूस नहीं होने दी थी. बार-बार अपनी कलाई घड़ी देखते अमन से उसकी मॉम ने पूछा –‘”किसका इंतज़ार कर रहा है, अमन. अब तो तेरी मॉम आ गई है.”“मै ने सुमन के बारे में बताया था, पता नही आज अभी तक क्यों नहीं आई.”“अरे वो लड़की आई थी, पर मै ने उसे उसकी औकात बता दी. ब्लैंक चेक दे रही थी, पर वो शायद उससे भी कही ज़्यादा की उम्मीद लगाए हुए थी. वापिस चली गई.”रूखी आवाज़ में मॉम ने कहा.“ओह नो, मॉम ये तुमने क्या किया? वह एक बहुत स्वाभिमानी लड़की है. आज उसकी वजह से ही मुझे जीने की हिम्मत मिली है. उसका अपमान कर के तुमने बहुत बड़ी गलती की है.”अमन व्याकुल हो उठा.’“एक लड़की से इतना बड़ा धोखा खा कर भी तुझे अक्ल नही आई? ऎसी लडकियां अमीर लड़कों पर डोरे डाल कर धोखा देती हैं. इनकी मीठी-मीठी बातों के जाल में तू फंस कर धोखा खा चुका है.”“बस,मॉम. अब सुमन के खिलाफ एक शब्द भी नही सह सकता. काश तुम उसे पहचान सकतीं. अब तो उससे माफी माँगने का भी साहस नहीं रहा. ये तुमने क्या कर दिया, मॉम.”अमन की आवाज़ भीग गई.“तू बेकार परेशान हो रहा है, उसके घर का पता बता दे, एक-दो लाख का चेक मिलते ही तेरे पास थैंक्स देने भागी आएगी. पैसों में बड़ी ताकत होती है.”आवाज़ गर्वीली थी.“एक दिन मुझे भी अपने पैसों पर अभिमान था, पर सुमन के साथ जाना, सच्ची खुशी पैसों से नहीं, नि:स्वार्थ प्यार और मन की शान्ति से मिलती है. हमारे पास पैसों की कमी नही है, मॉम, पर मुझे तुमसे या डैडी से कभी प्यार नही मिल सका. तुम दोनों के होते हुए भी मै कितना अकेला छूट गया, मॉम, अपने अकेलेपन को भुलाने के लिए अमीरी का खोखला चोंगा पहिन अपने को धोखा देता रहा.”“ये तू कैसी बहकी-बहकी बात कर रहा है, अमन? हमने तुझे क्या नहीं दिया?”“प्यार नहीं दे सके मॉम. आज भी डैडी लन्दन में मुझसे ज़्यादा अपने बिजनेस में बिजी हैं. मेरे अकेले मन को सुमन ने अपने निश्छल प्यार से सराबोर किया है.”अमन की आवाज़ रुंध गई.अमन की बात से उसकी माँ स्तब्ध हो गई, ये कैसा कडवा सच अमन कह गया. बचपन से आया और नौकरों के सहारे उसे छोड़, वह पति और अपने कामों में व्यस्त रहीं. पांच-छह साल का नन्हा अमन माँ को बाहर जाता देख माँ का आँचल पकड़ उन्हे रोकने की कोशिश करता था, पर वह कब रुकीं? बेटे के हाथ में चॉकलेट का डिब्बा थमा, चली जाती थीं. अमन के आंसू माँ को कब रोक सके. बाद में उसने अकेलेपन को अपनी नियति स्वीकार कर लिया था. अगर सुमन के साथ ने अमन के खाली मन को पूर्ण किया है तो वह सुमन से उसे अलग नहीं कर सकतीं. इतना तो समझ में आ ही गया है कि जिस लड़की ने अमन को इतना बदल दिया है वो साधारण लड़की नही है. उन्हें सुमन से माफी मांगनी ही होगी.दरवाज़े की दस्तक पर सुमन चौंक गई. माँ स्कूल जा चुकी थीं. दरवाज़े पर अमन की माँ को देख सुमन विस्मित थी.“आप यहाँ? शायद और अपमान करना बाक़ी रह गया था.”तिक्त स्वर में सुमन ने कहा.“घर के भीतर नहीं आने दोगी?”शांत स्वर में अमन की मॉ ने कहा.‘हमारे इस छोटे से घर में आपके लायक फर्नीचर नहीं है. आपकी आदत मखमली सोफों पर बैठने की है.’”अनायास ही सुमन के स्वर में व्यंग्य आ गया, अपना वह अपमान भूली नही थी.“मुझे माफ़ नहीं करोगी बेटी? मानती हूँ तुम्हे समझने में गलती हो गई. उसके लिए बहुत शर्मिंदा हूँ.”“आप मुझसे बड़ी हैं, माफी मांग कर और अपमानित मत कीजिए. हम उस माँ की बेटी हैं जिसने अपना पति खोकर भी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया. मुश्किलों से डरे बिना, साहस के साथ स्वाभिमान का जीवन जिया और हमें भी यही सिखाया है, अन्याय के आगे कभी सर मत झुकाना. आपको अमन के साथ होना चाहिए.”दृढ आवाज़ में सुमन बोली.“जानती हो सुमन आज अमन ने मेरी आँखें खोल दीं, मै माँ का कर्तव्य नहीं निभा सकी. उसके मन का खाली कोना तुमने भरा है, अब उसे फिर अकेला मत होने दो, सुमन.” माँ का स्वर दयनीय हो आया.“शायद अमन ने आपको यहाँ भेजा है. आप उसकी माँ हैं आपका प्यार उसे पूर्ण कर देगा.”“नहीं अमन ये जानता भी नहीं कि मै यहाँ आई हूँ. तुम नही जानतीं, अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए एक बार वह रीता नाम की एक धोखेबाज़ लड़की के जाल में फँस कर पूरी तरह से टूट चुका है, अब दोबारा फिर उसे उसी हाल में नही देख सकती. मेरी मदद करो, सुमन.”“अमन एक समझदार लड़का है, वह अपनी कमजोरियों को जान गया है. उसे वक्त देना चाहिए.हमें पूरा विश्वास है वह ठीक रहेगा.”सुमन ने यकीन के साथ कहा.“तुम्हारे यकीन पर विश्वास है, सुमन, पर अगर तुम उसके पास नही गईं तो वह मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा. प्लीज़, सुमन मै अपने बेटे को नहीं खो सकती. अब मै जाग गई हूँ.”उनकी आँखों में आंसू थे.“ठीक है, आपके लिए आज चल रहे हैं, पर आगे के लिए आपको ही राह ढूढनी होगी.”माँ के साथ सुमन को आया देख अमन का उदास चेहरा खिल उठा. डॉक्टर से बात करने के बहाने मॉम दोनों को अकेला छोड़ कर चली गई थीं.“सुमन ,प्लीज़ माँम ने जो कुछ कहा, उसके लिए माफी मांगता हूँ. मुझसे नाराज़ मत होना, वरना मेरा जीना कठिन हो जाएगा.”अमन ने सच्चाई से कहा.अरे वाह, हम तो वी आई पी हो गए. अरे जनाब, इस धोखे में मत रहिएगा कि इस सुमन के पास इतना फालतू समय है कि आपकी नर्स बनी रहे. अब आपकी मॉम आ गई हैं, हमारी ड्यूटी खत्म.“अच्छा तो मैडम सुमन हमारी नर्स थीं. जो भी हो, इस नर्स ने इतनी अच्छी देखभाल की है कि उसे पूरी ज़िंदगी भर के लिए अप्वाइंट किया जाता है. बोलो मंजूर है, वैसे नो सुनने की तो मेरी आदत नही है.” अमन की मुग्ध दृष्टि ने सुमन को संकुचित कर दिया.“कल क्या होगा कोई नहीं जानता और तुम पूरी ज़िंदगी की बात कर रहे हो.”अमन का परिहास में कहा गया संकेत समझ कर भी सुमन अनजान बन रही थी.“मै कल में नहीं आज में जीता हूँ, सुमन और जानता हूँ मेरा आज बहुत सुखद है.”“कल और आज की क्या बातें हो रही हैं, मै भी तो सुनूं.”अमन की माँ आ गई थीं.“कुछ नहीं आंटी, अमन फिलौसफी झाड रहा है. वैसे आपको बताना था, कल हम माँ के साथ गया जा रहे हैं, पापा के लिए माँ हर साल पूजा करवाती हैं, एक वीक के बाद आएँगे.“ठीक है, बेटी. एक सप्ताह अमन और मै तुम्हे मिस करेंगे, पर तुम्हारा काम ज़्यादा ज़रूरी है.”“ओ के, अमन लौट कर मिलेंगे.”प्यार भरी नज़र अमन पर डाल, सुमन चल दी.घर लौटी सुमन सोच में पड़ गई, अमन की बातों का अर्थ स्पष्ट था, क्या वह उसे चाहने लगा है? स्वयं सुमन भी तो उसकी ओर खिचती जा रही है. अमन की माँ ने कहा सुमन की वजह से अमन बदल गया है. सुमन ने भी तो साफ़ महसूस किया है कि अमन उसके साथ कितना खुश रहता है. अपनी निजी बातें भी उसने सुमन के साथ शेयर की हैं, क्यों? क्या दो सप्ताह में यह संभव हो सकता है? नहीं उसे अपने को रोकना होगा, समीर एक-दो सप्ताह बाद आ जाएगा, उसके बाद सुमन को अमन के पास जाने की ज़रुरत नहीं रह जाएगी, पर क्या अपने को अमन से दूर रख पाना उसे संभव हो पाएगा?एक सप्ताह गया में बिता कर सुमन लौटी थी. इस दौरान भी वह अमन को कितना याद करती रही. अपने से डरती, कहीं उसे अमन से प्यार तो नहीं हो गया था वरना हर पल अमन को क्यों याद करती. पता नहीं अमन भी उसे इतना ही मिस कर रहा होगा. उसे अमन के पास जाने की उतावली थी.“माँ, हम अमन को देखने जा रहे हैं.”.”“ऎसी भी क्या उतावली है, इतना थक कर आई है, कल चली जाना,”“माँ हम बिलकुल नहीं थके हैं, शायद अमन की माँ को हमारी ज़रुरत हो.”सुमन को देखते ही अमन का चेहरा खिल गया.. हाथ में पकड़ी कॉपी और पेन्सिल रख कर कहा-“बहुत दिन लगा दिए, बहुत अकेला महसूस कर रहा था.”“वाह सात दिन बहुत हो गए, अगर ऐसा हो कि फिर कभी ना आ सकूं तो क्या करोगे?”“तब शायद ज़िंदा नहीं रह पाऊंगा. तुम्हारे साथ समय पंख लगा कर उड़ जाता है, पर तुम्हारे बिना एक-अक पल भारी लगता है, सुमन. तुम मेरी ज़िंदगी बन गई हो.”अमन गंभीर था.“कोई किसी की ज़िंदगी नहीं बन सकता, अमन, इस सच्चाई को स्वीकार करने में ही भलाई है. हाँ ये कागज़ पर क्या बना रहे थे?”अमन ने जो कागज़ रखे थे, उन पर आड़ी-तिरछी रेखाएं खिंची थीं.“झोपड़पट्टी में रहने वालों के लिए सस्ते और आराम दायक घर बनाने के लिए डिजाइन बना रहा हूँ.”“क्या- - क्या कह रहे हो, अमन? तुम तो आकाश छूती बिल्डिंग्स बनाने का सपना देखते थे. उनकी जगह ये सस्ते घर, क्यों अमन?”सुमन विस्मित थी.“अब वह अभिमानी अमन सच की दुनिया में जीता है. सच्चाई ये है कि अमीरों के लिए आकाश छूती बिल्डिंग्स बनाने वाले हज़ारों बिल्डर्स भारी रकम ले कर महल खड़े कर देंगे, पर इन ग़रीबों की सुध कौन लेगा? मॉम से बात कर ली है अपनी दौलत से इन ग़रीबों के लिए एक कॉलोनी बनाऊंगा. कॉलोनी का नाम भी तय कर लिया है.”अमन के चेहरे पर मुस्कान थी.“विश्वास नहीं होता, तुम में इतना बदलाव कैसे आ गया?”विस्मय सुमन के चेहरे पर स्पष्ट था.“एक लड़की है, जिसने एक अभिमानी अमन को निराभिमानी बना दिया और असली खुशी का मतलब समझा दिया. अब सिर्फ मै ही नहीं मॉम और डैड भी खुशी का सच्चा अर्थ समझ रहे हैं. तुम्हारी वजह से मुझे उनका प्यार मिल सका है, सुमन. अब तो समझ गईं वो लड़की कौन है. याद है, तुमने कहा था, ग़रीबों के लिए घर बनाए वाले को तुम इज्ज़त दोगी, उसी प्यार के इंतज़ार में हूँ.”अमन के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी.“तुम बेकार में मुझे आकाश पर चढ़ा रहे हो, मुझमे ऐसा कुछ नहीं है. तुम हमेशा से अच्छे इंसान थे वरना एक अनजान लड़की की लिए अपनी जान खतरे में ना डालते..”“कुछ भी कहो, सुमन मेरे ऊपर झूठे अभिमान का जो रंग चढ़ा हुआ था, वो तुमने धो कर मुझे सच की राह दिखाई है. अब वादा करो, तुम मुझे छोड़ कर कभी नहीं जाओगी. मेरा अब जो सपना है उसे पूरा करने में हमेशा –हमेशा के लिए तुम मेरे साथ रहोगी.”“अमन बेटे, अब सुमन हमेशा तुम्हारा साथ देगी, तुम्हारे हर काम में और तुम्हारे जीवन में यह तुम्हारी प्रेरणा और जीवन संगिनी बनेगी. सुमन की माँ ने इस बात की स्वीकृति मुझे दे दी है. क्यों सुमन, तुम्हे तो कोई ऐतराज़ नहीं है ना?”अचानक अमन की मॉम ने मुस्कुराते हुए आ कर कहां.“मुझे लगता है, अभी अमन को अपने पैरों पर खड़ा होना है, मुझे भी अपनी पढाई पूरी करनी है. अगर तब तक अमन का मन नहीं बदला तो हम अपने जीवन का निर्णय ले सकेंगे.” गंभीरता से सुमन बोली.“मुझे तुम्हारी ये शर्त मंजूर है, सुमन. अपने मन को जानता हूँ, ये अब कभी नहीं बदलेगा. इसे बस तुम्हारी हाँ की प्रतीक्षा रहेगी. तुम मेरा इंतज़ार करोगी ना सुमन?”“तुमने ना कहने की गुंजाइश छोडी ही कहाँ है, अमन ?’हलकी मुस्कान वाले सुमन के झुके मुख को अमन मुग्ध निहारता रह गया.
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