Tuesday 21 April 2020

फूलों की अमानत Follon ki Amaanat Hindi Story / iLvStories

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“कल की फ्लाइट से जावेद आ रहा है.” यूनीवर्सिटी से वापिस आए अरमान से उसकी अम्मी ने कहा.“क्या, जावेद आ रहा है, पर अम्मी आपने उसे यहाँ के हालात नहीं बताए?”अरमान ने संजीदगी से पूछा.“बताया था, इस वक्त यहाँ हालात ठीक नहीं हैं, पर वो तुझसे मिलने को उतावला है, उसके अब्बू ने भी मना किया, पर वो नहीं माना, जानती हूँ, बचपन से तुम दोनों में कितना प्यार है, अमरीका से पढाई पूरी करके दिल्ली एक कांफ्रेंस में.आया है. मना करने पर नहीं माना.”“सच तो ये है अम्मी, उससे मिलने से सबसे ज्यादा खुशी तो मुझे होगी. देखना है जनाब वहां से कितना बदल कर आए हैं.”अरमान के चेहरे पर हँसी थी.“दस साल पहले जावेद के अब्बू को जब अमरीका की एक बड़ी कम्पनी में नौकरी मिली तो वो अपना वतन छोड़ कर अपनी फैमिली के साथ अमरीका चले गए. बस एक बार तेरे अब्बू की बीमारी में मिलने आए थे. हमें भी उन सबकी कितनी याद आती है.”’जाहिदा बेगम ने उदासी से कहा.प्लेन से उतर रहे जावेद को पहिचानने में अरमान को मुश्किल नहीं हुई , हाँ सूट में वह काफी जंच रहा था.अरमान को देखते ही जावेद का चेहरा खुशी से खिल गया.“हेलो बिग ब्रदर, यूनीवर्सिटी में प्रोफ़ेसर बन गए, अब तो स्टूडेंट्स पर रोब जमाते होगे.”अरमान के गले लगते जावेद ने मज़ाक किया.“अरे अब वो टाइम नहीं रह गया है, यहाँ सब कुछ बदल गया है. घर चल अम्मी इंतज़ार कर रही होंगी,”“हाँ, चची जान कैसी हैं? चाचू के इंतकाल का बड़ा अफ़सोस है. आखिरी वक्त उनसे मिल भी नहीं सका.”कार में बैठा जावेद सूनी सड़क और बंद दूकानों को देख कर ताज्जुब कर रहा था.“”क्या बात है, भाई जान इतना सन्नाटा क्यों है, क्या आज कोई खास बात है?”“क्या अमरीका में वादी के हालात नहीं जान सका या वहां जा कर अपनी वादी को भुला दिया?”“सच तो यह है, पढाई का प्रेशर इतना ज्यादा रहा कि और कुछ कुछ याद ही नहीं रह जाता था. अब्बू से भी ज़्यादा बात नहीं हो पाती थी, बस तुम सबका हाल ज़रूर पूछता रहता था.”“अब तुझे पुरानी वादी नहीं मिलेगी, जावेद. कुछ गुमराह इंसानों ने यहाँ की हवा में ज़हर घोल दिया है. यहाँ अब लाळडेह के गीत नहीं गूंजते, वादी रन-बिरंगे फूलों की खुशबू से नहीं महकती, चिड़ियाँ गीत गाना भूल गईं हैं, बारूद के धुंए से चिनार की पत्तियाँ पीली पड़ गई हैं, कल की गोलीबारी की वारदात की वजह से आज कर्फ्यू लगा है. तुझे एयरपोर्ट से घर लाने के लिए स्पेशल परमीशन ली है.”अरमान ने दुखी आवाज़ में सच्चाई बयान कर दी.घर पहुंचे जावेद को जाहिदा बेगम ने सीने से लगा लिया, दोनों की आँखों से आंसू बह निकले.“चची जान आम्मी और अब्बू ने आपको सलाम भेजा है. आपको दोनों बहुत याद करते हैं. अम्मी तो अपना वतन खासकर अपनी वादी को बहुत मिस करती हैं.जल्दी ही अब्बू और अम्मी आपसे मिलने आएँगे अम्मी तो मेरे साथ आना चाहती थीं, पर अब्बू को अकेले तकलीफ होती.”“जानती हूँ बेटा, अच्छा हुआ वे यहाँ के हालात बिगड़ने के पहले ही चले गए. आओ लंच तैयार है, तुम्हारा मनपसंद कश्मीरी पुलाव बनाया है. अमरीका में तो अमरीकी खाना मिलता होगा.”‘अमरीका में खाना तो हर तरह का मिलता है, पर आपके हाथों वाला टेस्ट कहाँ मिलता है.”लंच के बाद जावेद अरमान के साथ बाहर आ गया. बाहर गार्डेन में फूलों का मेला जैसा सजा हुआ था. क्यारियों में बेहद खूबसूरत रंग-बिरंगे फूल हवा के झोंको से खुशी में झूमते से लग रहे थे.“अरे वाह, भाई जान आप तो कह रहे थे वादी में फूल नहीं खिलते, पर यहाँ तो शायद ही वादी का कोई फूल ना खिला हो. वैसे आपने क्या पुराना घर इन्हीं फूलों के लिए छोड़ा है.”“ठीक कहते हो, अम्मी पुराना घर नहीं छोड़ना चाह्ती थीं,उन्हें बहुत मुश्किल से मना कर ला पाया हूँ.”“क्यों क्या इस घर में आने की कोई वजह थी?”“हां, उसकी अमानत की रक्षा जो करनी थी. जाते, हुए उसने बस यही वादा तो लिया था, उसके जाने के बाद उसकी अमानत ये फूल मुस्कुराना ना भूलें..”अरमान ने उदासी से कहा.‘आप किसकी बात कर रहे हैं, भाईजान?”जावेद चौंक गया.“लम्बी कहानी है, जाने दे. तू बस चार दिन के लिए आया है. अपनी अमरीका की कहानियां सुना. कोई गर्ल फ्रेंड बनी है या यूंही वापिस आ गया.”अरमान ने परिहास किया.“मेरी कहानी में कोई गर्ल-फ्रेंड नहीं है, पढाई का बोझ इतना ज़्यादा था कि कुछ और सोचने-करने का वक्त ही नहीं मिला. भाई जान हम दोनों एक-दूसरे के जितने करीब हैं उससे मुझे साफ़ लग रहा है, आपके मन में कोई बोझ है, कहिए ना भाई जान क्या बात है?”“ऐसा कुछ नहीं है. तेरे साथ चंद दिन पूरी तरह से एंज्वाय करना चाहूंगा. हम दोनों को जी खोल कर पहले की तरह से खूब हंसना है.” “आप पहले तो अपनी हर बात मेरे साथ शेयर करते थे, क्या कुछ सालों में हमारे बीच दूरी आ गई है. क्या अब मै आपका प्यारा भाई नहीं रहा.”जावेद ने शिकायत सी की.“नहीं तू आज भी मुझे उतना ही अजीज़ है, ज़रूर बताऊंगा,पर तुझे वक्त देना होगा.सुन सकेगा?”“आपका एक-एक लफ्ज़ सुन कर ही सच्ची खुशी होगी. आप शुरू कीजिए.”“ठीक है, अम्मी से कह आऊँ हमारा डिनर फ्रिज में रख दें, हमारा इंतज़ार ना करें, हम दोनों पूरी रात बातें करेंगे.”.“जानती हूँ दोनों लंबे वक्त के बाद मिले हो. ढेरों बातें करनी होंगी, पर खाना ज़रूर खा लेना.”जाहिदा बेगम ने कहा. अरमान को खुश देख वह खुश थीं. इधर पिछले चार सालों से जैसे वह हंसना ही भूल गया था.अपने बेडरूम में आकर अरमान ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया.अरमान ने कहना शुरू किया-“ये बात उस वक्त की है, जब हमारी वादी की हवा में में मजहबी नफरत का ज़हर नहीं बहता था. हाँ कभी-कभी कहीं कोई छुटपुट वारदात होती थी, पर उससे बेपरवाह हम सुकून की ज़िंदगी जी रहे थे. हिस्ट्री में एम ए में टॉप करने के बाद हेड की गाइडेंस में रिसर्च कर रहा था. हेड ने मझे कुछ क्लासेज लेने को दिए थे. रिसर्च पूरी होते ही लेक्चरारशिप मिलनी पक्की थी. “उस दिन एक किताब लेने लाइब्रेरी गया था. लाइब्रेरियन के पास वो लड़की परेशान सी खड़ी कह रही थी- “याद कीजिए सर. कल आपके पास दो बुक्स रखवा कर गई थी. आप कह रहे हैं बुक्स कोई और ले गया. मुझे उन किताबों की बहुत ज़रुरत है.”लड़की परेशान दिख रही थी.“देखिए मोहतरमा, अगर वो किताबें इतनी ज़रूरी थीं तो आप कल ही क्यों नहीं ले गईं. यहाँ इतने स्टूडेंट्स आते हैं न जाने कब कौन ईशू करा कर ले गया. हर एक की रखी किताब कैसे याद रख सकता हूँ. अरमान साहेब आप ही इन मोहतरमा को समझाइए.”लाइब्रेरियन ने अरमान को देख कर कहा.“आप किन किताबों की बात कर रही हैं?’किताबें लेने आए नौजवान रिसर्च- स्कॉलर अरमान सिद्दीकी ने लड़की और लाइब्रेरियन की बातें सुन कर जानना चाहा.“मुझे कीट्स की कविताओं पर लिखी गई समीक्षाएं पढनी हैं, उन्हीं के आधार पर अपना पेपर लिखना था. अगर वो किताबें नहीं मिलीं तो मेरा पेपर अच्छा नहीं बनेगा.”“लाइब्रेरी में तो किताबों की दो-तीन कॉपीज़ ज़रूर होती हैं. ठीक से देखिए किताब आपको मिल जाएगी. वैसे आपको कीट्स पर कौन सी बुक्स चाहिए?” अरमान ने पूछा.“कीट्स की कविताओं पर बस वही एक अच्छी किताब थी, मुझे एक इम्पॉरटेंट पेपर सबमिट करना है. कल मेरे पास लाइब्रेरी कार्ड नहीं था इसलिए किताब यहाँ रखवा दी थीं. ज़रूर मेरा ही कोई साथी किताब ले गया होगा.”लड़की का सुन्दर चेहरा मायूस दिख रहा था.“आपकी परेशानी समझ रहा हूँ. वैसे क्या आप इस यूनीवर्सिटी में इंगलिश विषय ले कर पढाई कर रही हैं?” अरमान की उत्सुकता बढ़ गई थी.“जी हाँ, अभी इंगलिश लिटरेचर में एम ए प्रीवियस में हूँ.”“ये तो बड़ी खुशी की बात है, यहाँ ज़्यादातर लडकियां उर्दू, हिस्ट्री जैसे सब्जेक्ट लेती हैं. इंगलिश लिटरेचर में शायद आप अकेली ही लड़की होंगी. वैसे भी वादी की कम ही लडकियां यूनीवर्सिटी या कॉलेज में पढने बाहर आ पाती हैं. आपसे मिल कर खुशी हुई.”अरमान की आँखों में लड़की के लिए प्रशंसा थी.“असल में मेरे पापा खुले ख्यालों वाले हैं. उनका मानना है, लड़की को अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाना चाहिए, इसके लिए एजुकेशन बहुत ज़रूरी है. पापा फिजिक्स डिपार्टमेंट में हेड थे.” उसके चेहरे पर कुछ गर्व छलक आया."ये तो बड़ी खुशी की बात है, आपके पापा का क्या नाम है?”किताबें लाइब्रेरियन से लेते अरमान ने पूछा.“डॉक्टर पी के मट्टू, फिजिक्स उनका फेवरिट सब्जेक्ट था. उनके रिटायरमेंट के बाद अभी भी कुछ् स्टूडेंट्स उनसे अपनी प्रॉब्लेम सौल्व कराने आते हैं. अरे बातों –बातों में देर हो गई और बाहर तेज़ बारिश शुरू हो गई. अब यहाँ रुकना पडेगा.. देर होने से मम्मी परेशान हो जाती हैं.” बाहर नज़र डालती वो परेशान हो उठी.“आप कहाँ रहती हैं.? मेरे पास कार है आपको आपके घर ड्रॉप कर सकता हूँ.”“नहीं-नहीं, आपको तकलीफ नहीं दे सकती, यहीं कुछ देर वेट कर लूंगी.”“मेरी तकलीफ छोड़िए मै ने पूछा आप कहाँ रहती हैं, और अपना पता बताते मत डरिए. मै इसी यूनीवर्सिटी के हिस्ट्री डिपार्टमेंट में अपनी पीएच डी सबमिट करने वाला हूँ, इसीलिए बुक्स लेने लाइब्रेरी आता हूँ.”अरमान के चेहरे पर गंभीरता थी..“लाल चौक से थोड़ा आगे जा कर राइट टर्न लेना होता है. उसी रोड पर मेरा घर है.”लड़की ने कहा.“अरे मेरे घर का भी वही रास्ता है. तब तो कोई मुश्किल ही नही है. आइए मेरी कार पास ही में है.”दोनों लाइब्रेरी से बाहर निकल आए, तेज़ी से कार के पास पहुँच अरमान ने उसके लिए आगे वाली डोर खोली थी. कुछ संकोच के साथ वह कार में बैठ गई. चहरे पर उदासी स्पष्ट थी. कनखियों से लड़की का चेहरा देखता अरमान उसकी मनोदशा समझ गया.“आप कम्प्यूटर पर भी तो कीट्स के बारे में बहुत सी जानकारी पा सकती हैं.’“असल में मै ने अपने पेपर- प्रेजेंटेशन के लिए जो टॉपिक सोचा है, उसके बारे में उस बुक में बहुत अच्छी जानकारी दी गई है.” शब्दों में निराशा साफ़ झलक रही थी.“परेशान न हों, कोई न कोई आपकी मदद ज़रूर करेगा. कहते हैं. जिस चीज़ को शिद्दत से चाहा जाए उसे पाने में सारी कायनात मदद करती है.”अरमान ने मजाकिया अंदाज़ में कहा.“आप तो फिल्मी डॉवळॉग बोल रहे हैं, अब कौन मेरी मदद करेगा?”मायूसी से उसने कहा.“हो सकता है, वो कोई मै ही हूँ. कोशिश करूंगा आपके काम की किताब आपको मिल जाए.” “शुक्रिया, आप मेरी हेल्प करने की कोशश करेंगे, मेरे लिए इतना ही काफी है.”“मुफ्त में शुक्रिया ना दें, पता नहीं बुक मिलेगी भी या नहीं. बाई दी वे आपका नाम क्या है?”“अनुप्रिया, पर सब मुझे अनु के नाम से पुकारते हैं.”“मेरा भी नाम तो अरमान है, पर अम्मी मान कहती हैं. एक बात समझ में नहीं आती, अगर छोटे ही नाम से पुकारना है तो बेकार में लंबे नाम ही क्यों रखे जाते हैं.’अरमान के चेहरे पर मुस्कान थी.कार से राiइट टर्न लेने के थोड़ी देर बाद अनु ने अपने जिस घर पर कार रोकने को कहा, उस घर को देखता अरमान चौंक गया. दूर से ही घर के सामने रंग-बिरंगे फूलों का मेला सजा हुआ था. हर रंग हर किस्म के फूल एक-दूसरे से होड़ लेते हवा के साथ झूम रहे थे. अरमान ने कार रोक दी और पूछा-“आप इस फूलों की वादी में रहती हैं?”आरमान के चहरे पर मुग्ध भाव था..“हमारे घर का नाम तो नन्दन कुटीर है ये घर हमारे बाबा ने बनवाया था, यह नाम उन्हीं ने दिया था. बहुत से फूलों के पौधे बाबा ने ही लगाए थे..”“आपका घर तो अन्दर भी गुलदानों में सजे फूलों से महकता होगा.”“जी नहीं, हमें शाख से फूल तोड़ना अच्छा नहीं लगता. शाख पर हंसते फूल ही अच्छे लगते हैं.” अनु के चेहरे पर खुशी झलक आई थी.“कमाल है, आखिर शाखों पर भी तो फूल मुरझा जाते हैं फिर उन्हें घर में क्यों न सजाया जाए.”“आपने शायद देखा नहीं है, शाख से गिरी पंखुड़ियां ज़मींन को तरह-तरह के रंगों से सजा देती हैं, जैसे ज़मीन पर कोलाज बनाया गया हो.”अनु की आँखों में जैसे सपने थे.“मान गया, आपका फलसफा बहुत खूबसूरत है. मै कभी ऐसा सोच भी नहीं सका.”“शुक्रिया, क्या आपने कभी फूलों की पंखुड़ियों को अपनी किताब के सफों में कैद नहीं किया है? मेरी बुक्स में तो तरह-तरह के फूल देखे जा सकते हैं.”“आपकी बातों से लगता है आप कोई शायरा हैं, जो सपनों की दुनिया में रहती हैं.”“नहीं-नहीं, हम शायरा नहीं हैं, पर हमारी एक दोस्त नफीसा थी, वह हमें उर्दू की शायरी सुनाती थी. हमें वो सुन कर बहुत अच्छा लगता था.”हळ्की मुस्कान से अनु का सुन्दर चेहरा खिल उठा”“अम्मी के साथ जब भी इस तरफ से गुजरता, इन फूलों की खूबसूरती अम्मी का दिल खुश कर देतीं. एक बार तो उन्होंने आपके घर के भीतर जाने का भी मन बना लिया था.”“तो फिर आप आए क्यों नहीं, आज भी हम घर के बाहर ही रुके हैं. चलिए अन्दर आकर एक कप कॉफी ले लीजिए. पापा आप से मिल कर खुश होंगे.”शुक्रिया, पर आज नहीं, देर होने पर मेरी अम्मी भी आपकी मम्मी की तरह नाराज़ हो जाएंगी.”“ठीक है, पर वादा कीजिए एक दिन आप अपनी अम्मी के साथ आएँगे.”“अगर मेरी अम्मी आपके कुछ फूलों को अपने साथ ले जाना चाहें तब तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगी. क्या आप उन्हें फूल तोड़ने की इजाज़त देंगी?”अरमान के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी.“आपने आज लिफ्ट दी है उसके बदले में फूल देना तो बनता है. हिसाब बराबर.”अनु हंस दी.‘बाय’ कह कर कार से उतरती अनु ने हाथ हिला कर अरमान को विदा दी थी.दरवाज़ा खोलती मम्मी ने अनु को देख कहा-“यहाँ का मौसम जानती है, फिर भी छाता नहीं ले गई. भीग गई होगी.”“नहीं मम्मी, एक अरमान साहब ने अपनी कार से छोड़ दिया, जानती हो मम्मी उनकी अम्मी हमारी बगिया के फूलों की बहुत तारीफ़ करती हैं..”“उन अच्छे मददगार इंसान का क्या नाम है?”अनु की बात सुनते पापा ने पूछा.“अरमान सिद्दीकी, यूनीवर्सिटी में हिस्ट्री सब्जेक्ट में रिसर्च कर रहे हैं.”“तू उनके साथ घर आई, तेरी क्या अक्ल मारी गई है. देखती नहीं यहाँ के हालात बदल रहे हैं, उळ्टी- सीधी बातें सुन कर डर लगता है.जब तक तू वापिस नहीं आ जाती मेरी जान सूखती रहती है.”‘अब बस भी करों सुनीता, अभी तो अनु घर पहुंची है और तुम शुरू हो गईं. इस घर में अनु के बाबा की यादें हैं, उनके सपने हैं, फिर यहाँ पुलिस डिपार्टमेंट में एस पी अनवर अंसारी हमारा स्टूडेंट रहा हैं, मेरी बहुत इज्ज़त करता है, अनवर जानता है हमें हमारे इस घर और वादीसे कितना लगाव है, हमें डरने की क्या ज़रुरत है?’“पापा हमने जो किताबें कल रिज़र्व कराई थी, कोई और ले गया.”अनु ने अपनी परेशानी बताई.“कोई बात नहीं, मेरी बेटी अपनी बुद्धि से लिख सकती है. कॉफी तैयार है, तेरा ही इंतज़ार कर रहा था.”“थैंक यूं पापा, वैसे अरमान जी ने कहा है, वो मेंरे लिए किताब ढूँढने की कोशिश करेंगे.”“ये तो अच्छी बात है. मुझे पूरी उम्मीद है तेरा काम बन जाएगा.”“अनु क्या तू पागल हो गई है, किस अरमान की बात कर रही है? अनजान लोगों से दूर रहने में ही भलाई है.”सुनीता ने गुस्से से कहा.“सुनीता, तुम बेकार डरती हो, सब इंसान एक से नहीं होते. हर एक को शक की निगाह से देखना गलत बात है. हर धर्म और जाति में अच्छे और बुरे दोनो तरह के लोग होते हैं.”पापा ने समझाना चाहा.“आप बाप और बेटी को समझाना ही बेकार है.”नाराज़ सुनीता किचेन में चली गई.“अनु, पब्लिक लाइब्रेरी से एक अच्छी बुक मिली है. बहुत से क्रिटिक्स ने कीट्स पर अपने विचार दिए हैं. क्या बुक अभी पहुंचा दूं या सवेरे तक इंतज़ार कर सकती हो?” रात के आठ बजे अरमान का फोन आया था.“ओह, थैंक्स, वैसे तो बुक अभी मिलने से मै रात में काम कर सकूंगी, पर शायद आपको तकलीफ होगी, कल सवेरे का बेसब्री से इंतज़ार करूंगी. एक बार फिर शुक्रिया.”अनु की आवाज़ में खुशी थी.“मेरी तकलीफ के लिए परेशान ना हों, आपके घर के पास ही हूँ, उम्मीद है, किताब आपकी मुश्किल आसान कर देगी. दस मिनट में पहुँच रहा हूँ.”“पापा,अरमान साहब को एक किताब मिली है, वो अभी देने आ रहे हैं.”अनु ने खुशी से कहा.“अनु बेटी, ये तो तेरी ज्यादती है, उन्हें इस वक्त तकलीफ़ दे रही है.”“पापा, उनहोंने कहा, वो कहीं हमारे घर के पास ही हैं और फिर उनके पास कार भी तो है.” अनु ने भोलेपन से कहा.डोर -बेल पर अनु के पापा ने दरवाज़ा खोला था. उनके पीछे अनु भी आई थी.‘गुड ईवनिंग, सर. आपकी साहिबजादी के लिए किताब लाया हूँ. उम्मीद है, इससे उनका काम चल जाएगा. किताब सात-आठ दिनों तक रख सकती हैं. अब मै चलता हूँ.” किताब देते अरमान वापिस जाने को मुड़ा था.“थैक्स, मेरी पागल बेटी ने आपको भी परेशान कर दिया. आप घर में तशरीफ लाइए. मेरी बेटी की आप इतनी हेल्प कर रहे हैं, कम से कम चाय या कहवा तो ले सकते हैं.”“आज नहीं, घर में अम्मी भी इंतज़ार कर रही है, वैसे आपकी बेटी की मदद करने की एक वजह ये है कि इनकी तरह मुझे भी जब क्लास में कोई काम मिलता था तो सबसे अच्छे काम का रिमार्क पाने के लिए ऐसे ही बेचैन हो जाता था. आज अनु जी में भी वही जज़्बा दिखाई दिया.”अनु की ओर मुस्करा कर देखते हुए अरमान ने कहा.“पापा, हमने बताया था न कि इनकी अम्मी को हमारे घर के फूल बहुत अच्छे लगते हैं, इनसे कहिए वो अपनी अम्मी के साथ हमारे यहाँ आएं.”“ये तो तूने अच्छी बात कही, अरमान साहिब आप अपनी अम्मी के साथ कभी तशरीफ ज़रूर लाएं, हमें बहुत खुशी होगी.”डॉ.मट्टू ने कहा.“ज़रूर, ये वादा रहा. अम्मी तो इन फूलों पर कोई नज्म ही लिख डालेंगी. मेरी अम्मी शायरा हैं. आप से एक गुजारिश है, आपके बेटे की तरह हूँ, मुझे आप सिर्फ अरमान ही कहें तो खुशी होगी.” गुड नाइट कह कर अरमान चला गया.किताब पाकर अनु खिल उठी, पूरी रात किताब से नोट्स बनाती रही. सवेरे तक अनु आधा पेपर तैयार कर चुकी थी. चेहरे पर रात की थकान का कोई चिह्न भी नहीं था. मोबाइल पर अरमान की कॉल थी-“कहिए अनु जी, किताब आपके कुछ काम की रही या मेरी मेहनत बेकार गई.”“आपकी किताब तो इतनी अच्छी है कि अब हमें पूरा यकीन है कि हमारा पेपर बेस्ट होगा.”अनु की आवाज़ में खुशी छलकी पड़ रही थी.“वो तो होना ही चाहिए, टॉपर लड़की का पेपर भी बेस्ट ही होगा.”“आपको कैसे पता हम क्लास में टॉप करते हैं?”अनु विस्मित थी.“इतने स्टूडेंट्स से साबका पड़ता है, बातों से ही उनकी काबलियत समझ जाता हूँ.”“तब तो आप सचमुच अच्छे प्रोफ़ेसर बनेंगे.. आपके स्टूडेंट्स आपको बहुत प्यार करेंगे.’“ये बात तो पता नहीं, पर मेरी बातें कुछ को अच्छी नहीं लगतीं. वैसे यूनीवर्सिटी जाते वक्त आपको पिक- अप कर सकता हूँ, आपका क्लास किस वक्त है?”“नहीं-नहीं, आप क्यों तकलीफ करेंगे, हम तो रोज़ जाते ही हैं. आपको तो अपने टाइम से जाना होगा, हमारा क्लास तो दस बजे शुरू हो जाता है.’“आप शायद नहीं जानतीं, दो महीनों में थीसिस सबमिट करनी है, इसलिए रेफरेंस बुक्स पढने के लिए मै रोज़ दस बजे लाइब्रेरी जाता हूँ. आज मौसम बहुत खराब है, तेज बारिश में जाने में मुश्किल होगी. आप तैयार रहें, मै गेट पर पहुँच कर कॉल करूंगा.” बात खत्म करके अरमान ने फोन काट दिया.इधर पिछले कुछ दिनों से वादी में कहीं-कहीं बम और गोलीबारी की खबरें लोगों के बीच दहशत फैला रही थीं. तरह-तरह की अफवाहों से बाज़ार गर्म था. वादी की हवा बदलती नज़र आ रही थी. अनु असमंजस में पड़ गई, क्या अरमान जी के साथ जाना ठीक होगा? मम्मी को तो यह कतई अच्छा नहीं लगेगा, पर मना करने का भी तो कोई वाजिब कारण नहीं है. जो भी हो उसे तैयार तो होना ही है.आज पानी बरस रहा है, इस कारण पापा से अरमान जी के साथ जाने की इजाज़त ज़रूर मिल जाएगी.अनु का अनुमान ठीक ही था. “ये तो अरमान की शराफत है, मौसम खराब देख कर तुझे लिफ्ट दे रहा है. कल भी तेरे लिए कितनी मुश्किल उठाई. मुझे हमेशा से सीरियसली पढाई करने वालों पर यकीन रहा है लौटते वक्त अगर तू अरमान के साथ आए तो उसे घर ले आना, उस दिन तो दरवाज़े से ही लौट गया था.”.पापा ने इजाज़त दे कर कहा.अरमान की कॉल सुनते ही अनु बाहर आ गई. गुलाबी सलवार-सूट में वह खिले फूल से दिख रही थी.“गुड मॉर्निंग, सर. आज फिर आपको तकलीफ दे रही हूँ.”हलकी मुस्कान के साथ अनु बोली.‘अगर ये तकलीफ है तो खुदा से दुआ ‘करूंगा ऎसी प्यारी तकलीफ रोज़ दें.’ मज़ाक के लहजे में कही गई बात ने अनु का गोरा चेहरा लाल कर दिया.यूनीवर्सिटी पहुँच कर अनु ने कहा –“आपके साथ हम भी लाइब्रेरी चलेंगे, हो सकता है कल वाली किताब भी मिल जाए”“मान गया आप तो मुझ से भी चार हाथ आगे हैं, जब तक वो किताब नहीं मिल जाती, आपको तसल्ली नहीं होगी, कहीं ऐसा न हो कोई प्वाइंट छूट जाए.’अरमान हंस रहा था..“इसका मतलब आप भी ऐसे ही थे, सर?”“एक बात कहना चाहूंगा, आप मुझे सर न कहें, सर कहने से अपने को बुज़ुर्ग महसूस करता हूँ. जब तक रिसर्च पूरी नहीं हो जाती मै भी आपकी तरह ही एक स्टूडेंट हूँ. अच्छा-भला सा नाम है मेरा, अरमान कहना मुश्किल तो नहीं है. एम ए कम्प्लीट करते ही आप भी लेक्चरार बन जाएंगी. टॉपर्स को तो उनके डिपार्टमेंट में नौकरी मिल ही जाती है. लेक्चरार बन कर तो हम दोनों कलीग ही होंगे.” “आपका नाम लेना क्या ठीक होगा, आप हमसे बड़े हैं?”विस्मित अनु ने पूछा.‘’जी हाँ, वही ठीक होगा. मै भी आपको बस अनु कहूंगा, नाराज़ तो नहीं होंगी?”“बिलकुल नहीं, बल्कि हमें अच्छा लगेगा.”“तो यही तय रहा, हम दोनों एक-दूसरे का नाम ही लेंगे. शाम को कब फ्री होगी, अगर उसी वक्त मै भी फ्री हुआ तो आप मेरे साथ चल सकती हैं.’“आज तो बस दो बजे तक ही क्लास है, आप हमारे लिए परेशान न हों.”‘”ये बार-बार परेशानी या तकलीफ जैसे लफ्जों का इस्तेमाल न करें तो बेहतर है. आपका घर मेरे रास्ते में पड़ता है, मेरी कार को कोई एक्स्ट्रा काम नहीं करना पड़ता है.. आपका इंतजार करूंगा.”“ठीक है, पर आज आपको हमारे घर रुकना पडेगा, पापा ने आपको बुलाया है.’“आपके पापा से मिलना और बात करना मेरी खुशकिस्मती होगी.”अनु के साथ अरमान को आया देख कर अनु के पापा खुश हो गए.“आओ बेटा, मुझे खुशी है, तुम मेरे लिए वक्त निकाल सके. अनु, अरमान बेटे के लिए कहवा तो लाओ. जानते हो अरमान, हमारी बेटी बहुत अच्छा कहवा बनाती है.”प्यार से अनु को देखते पापा ने कहा.“जी पापा, अभी लाई, वैसे आपने इतनी तारीफ़ की है पता नहीं आज कैसा बनेगा .”अनु संकोच से बोली.“आप से मिलने के लिए तो मेरे पास वक्त ही वक्त है. अब्बा के न रहने से किसी बुज़ुर्ग की कमी बहुत खलती है. अनु ने बताया आप भी प्रोफ़ेसर थे..”“तुम्हारे अब्बा भी क्या प्रोफ़ेसर थे.”“जी हाँ, मेरे अब्बू आसिफ सिद्दीकी साहब उर्दू डिपार्टमेंट के हेड थे,”“अरे आसिफ सिद्दीकी साहब को तो मै बहुत अच्छी तरह से जानता था. जब मै यहाँ के कॉलेज में था वह अपने डिपार्टमेंट में होने वाले मुशायरों और दूसरे प्रोग्रामों में मुझे हमेशा बुलाते थे. तुम उनके बेटे हो, तब तो मुझे भी अपना ही समझ सकते हो,” प्यार से डॉ मट्टू ने कहा.“अब्बू भी अपने दोस्तों को बहुत मिस करते थे. हमें अपने पुराने खुशहाल दिनों की बातें बताया करते थे. कहीं किसी वारदात की बात सुन कर रातों में सो नहीं पाते थे.”“ठीक कह रहे हो, अरमान. कब सोचा था इस फूलों की वादी में बम और गोलियां चलेंगी. जब-तब कहीं ना कहीं किसी वारदात की खबर सुनाई पड़ती है. कभी लगता है, झेलम का पानी भी मटमैला हो रहा है. हमारी स्वर्ग सी वादी को दुश्मनों की नज़र लग गई है.” डॉ मट्टू ने उदासी से कहा.“अरे, आप तो अब्बू के अलफ़ाज़ बोल रहे हैं, अब्बू इन हालात की वजह से बेहद गमगीन रहते थे. दुआ करता हूँ काश फिर से इस फूलों की वादी में अमन-चैन के फूल खिलें.” “मुझे तुम्हारे ख्यालात जान कर खुशी हुई. मुझे उम्मीद है तुम्हारे विचारों से नौजवानों को सही राह मिल सकेगी. अगर हमारी नई पीढी को तुम जैसा कोई सही राह दिखाने वाला मिल जाए तो वादी में अमन और खुशहाली ज़रूर वापस आ सकती है.” डॉ .मट्टू ने विश्वासपूर्ण शब्दों में कहा.“मेरी तो यही कोशिश है, पर आजकल पड़ोसी मुल्क से आए कुछ नौजवान और गुमराह लोग हमारे नौजवानों और सीधे-साधे लोगों को झूठे सब्ज़ बाग़ दिखा कर भरमा रहे हैं, उन्हें भड़का कर माहौल मे ज़हर घोलने की कोशिश कर रहे हैं. वे हमारे जैसे लोगों के विचारों से इत्तेफाक नहीं रखते.”अरमान ने गंभीरता से सच्चाई बयान की थी.“कोई बात नहीं, सच की हमेशा जीत होती है, वे भी सही-गलत में फर्क समझ जाएंगे.. लो कहवा आ गया.’ अनु कहावे के साथ आ गई थी. अरमान को कहवा दे कर अनु ने पापा को कप थमाया..“कभी अपनी अम्मी के साथ तशरीफ लाइए. उनकी शायरी का हम भी आनन्द लेंगे. अरमान को विदा देते डॉ मट्टू ने कहा-”“ज़रूर, अम्मी भी आप सबसे मिल कर बहुत खुश होंगी. अगर आप इजाजत दें तो अनु रोज़ मेरे साथ.क्लास के लिए

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