Sunday 9 April 2017

दिल की खिड़की से बाहर देखो ना कभी

0



 

दिल की खिड़की से बाहर देखो ना कभी

बारिश की बूँदों सा है एहसास मेरा

घनी जुल्फों की गिरह खोलो ना कभी

बहती हवाओं सा है एहसास मेरा

छूकर देखो कभी तो मालूम होगा तुम्हें

सर्दियों की धूप सा है एहसास मेरा ।

by Rony Chahal

 

0 comments:

Post a Comment